Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [कल्पिका "मा णं तुमं देवाणुप्पिए, मुण्डा [जाव] पध्वयाहि / मुजाहि ताव देवाणुप्पिए, मए सद्धि विउलाई भोगभोगाई, तओ पच्छा भुत्तभोई सुव्ययाणं अज्जाणं [जाव] पव्वयाहि"। तए णं सुभद्दा सस्थवाही मद्दस्स एयम8 नो परियाणइ / दोच्चं पि तच्चं पि सुभद्दा सत्थवाही मई सत्यवाहं एवं वयासी-"इच्छामि गं देवाणुप्पिया! तुम्भेहि अन्भणुनाया समाणी [जाव] पव्वइत्तए।" तए णं से भद्दे सत्थवाहे, जाहे नो संचाएइ बहूहि आघवणाहि य, एवं पनवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहि य माघवित्तए वा [जाव] पन्नवित्तए वा, सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा, ताहे अकामए चेव सुभद्दाए निक्खमणं अणुमन्नित्था। [37] तब भद्र सार्थवाह ने सुभद्रा सार्थवाही से इस प्रकार कहा देवानुप्रिये ! तुम अभी मुंडित होकर यावत् गृहत्याग करके प्रवजित मत होओ, मेरे साथ विपुल भोगोपभोगों का भोग करो और भोगों को भोगने के पश्चात् सुव्रता आर्या के पास मुण्डित होकर यावत् गृह त्याग कर अनगार प्रव्रज्या अंगीकार करना। भद्र सार्थवाह के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर भी सुभद्रा सार्थवाही ने भद्र सार्थवाह के वचनों का आदर नहीं किया- उन्हें स्वीकार नहीं किया। दूसरी बार और फिर तीसरी बार भी सुभद्रा सार्थवाही ने भद्र सार्थवाह से यही कहा–देवानुप्रिय ! आपकी आज्ञा-अनुमति लेकर मैं सुव्रता आर्या के पास प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ। जब भद्र सार्थवाह अनुकूल और प्रतिकूल बहुत सी युक्तियों, प्रज्ञप्तियों, संज्ञप्तियों और विज्ञप्तियों से उसे समभाने-बुझाने, संबोधित करने और मनाने में समर्थ नहीं हुआ तब इच्छा न होने पर भी लाचार होकर सुभद्रा को दीक्षा लेने की आज्ञा दे दी। दीक्षाग्रहण ____तए णं से भद्दे सस्थवाहे विउलं असणं 4 उबक्खडावेइ / मित्तनाइ० तओ पच्छा भोयण वेलाए [जाव] मित्तनाइ सक्कारेइ संमाणेइ / सुभदं सत्थवाहिं व्हायं [जाव] पायच्छित्तं सम्वालंकारविभूसियं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुलहेइ / तओ सा सुभद्दा सत्थवाही मित्तनाइ[जाव] संबन्धिसंपरिबुडा सविड्ढीए [जाध] रवेणं वाणारसीनयरीए मज्झमझेणं जेणेव सुम्बयाणं प्रज्जाणं उवस्सए, तेणेव उवागच्छद, 2 ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं ठवेइ, सुभई सस्थवाहि सोयाओ पच्चोरहेइ। तए णं भद्दे सत्थवाहे सुभदं सत्थवाहिं पुरओ काउं जेणेव सुध्वया अज्जा, तेणेव उवागच्छइ, २त्ता सुब्वयाओ प्रज्जाओ वन्दह नमसइ, 2 ता एवं क्यासी "एवं खलु, देवाणुप्पिया! सुभद्दा सत्थवाही ममं मारिया इट्ठा कन्ता, [जाव] मा णं वाइया पित्तिया सिम्भिया संनिवाइया विविहा रोयातङ्का फुसन्तु / एस णं, देवाणुप्पिया! संसारभउन्विग्गा, भीया जम्ममरणाणं, देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डा भवित्ता [जाव] पव्वयाइ / तं एवं अहं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org