Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 128
________________ वर्ग 4 : प्रथम अध्ययन] [95 सिरिसि सीहासणंसि चहि सामाणियसाहस्सोहि चउहि महत्तरियाहिं, जहा बहुपुत्तिया, [जाय] नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगया। नवरं दारियाओ नस्थि / पुथ्वभवपुच्छा। ___एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समयेणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए, जियसत्तू राया। तत्थ णं रायगिहे नयरे सुदंसणो नाम गाहावई परिवसइ, प्रड्ड / तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स पिया नामं भारिया होत्था सोमाला / तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स धूया पियाए गाहावयणीए अत्तया भूया नामं दारिया होत्था, बुड्डा बुड्ढकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी बरगपरिवज्जिया यायि होत्था। (5) हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था / गुणशिलक नामका चैत्य था / वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे / धर्मदेशना श्रवण करने के लिए परिषद् निकली। उस काल और उस समय श्री देवी सौधर्मकल्प में श्री अवतंसक नामक विमान की सुधर्मा सभा में बहुपुत्रिका देवी के समान चार हजार सामानिक देवियों एवं चार महत्तरिकाओं के साथ श्रीसिंहासन पर बैठी हुई थी (उसने अवधिज्ञान से भगवान् को राजगृह में समवसृत देखा / भक्तिवश वह वहाँ पाई और) यावत् नृत्य-विधि को प्रदर्शित कर वापिस लौट गई / यहाँ इतना विशेष है कि श्री देवी ने अपनी नृत्यविधि में बालिकाओं की विकुर्वणा नहीं की थी। श्री देवी के वापिस लौट जाने पर गौतम स्वामी ने भगवान् से उसके पूर्व भव के विषय में पूछा / भगवान् ने उत्तर दिया हे गौतम ! उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। गुणशिलक नाम का चैत्य था, वहाँ के राजा का नाम जितशत्रु था। उस राजगृह नगर में धनाढ्य सुदर्शन नाम का गाथापति निवास करता था। उस सुदर्शन गाथापति (सद्गृहस्थ) की सुकोमल अंगोपांग, सुन्दर शरीर वाली आदि विशेषणों से विशिष्ट प्रिया नाम की भार्या थी। उस सुदर्शन गाथापति की पुत्री, प्रिया गाथापत्नी की पात्मजा भूता नाम की दारिका-लडकी थी। जो वद्धशरीरा और वद्ध कमारी. जीर्ण शरीर वाली और जीर्णकुमारी, शिथिल नितम्ब और स्तनवाली तथा वरविहीन थी। भूता का दर्शनार्थ गमन 6. तेणं कालेणं तेण समयेणं पासे अरहा पुरिसादाणीए [जाव] नवरयणीए / वण्णओ सोच्चेव / समोसरणं परिसा निग्गया। तए णं सा भूया दारिया इमोसे कहाए लट्ठा समाणी हद्वतुट्ठा जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, 2 ता एवं क्यासी“एवं खलु, अम्मताओ! पासे परहा पुरिसादाणीए पुव्वाणुपुब्धि चरमाणे [जाव] गणपरिवुडे विहरइ / तं इच्छामि गं अम्मताओ, तुम्भेहिं अउभणुनाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायबन्दिया गमित्तए।' 'अहासुहं-देवाणुप्पिए, मा पडिबन्धं........' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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