Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ परिशिष्ट 1] [123 प्रत्येक ऋतु के अनुकूल, गर्भ के लिए हितकारी, मित, पथ्य, गर्भ को पोषण करने वाले देश और काल के अनुसार प्रहार करती हई, विविक्त-एकान्त में सकोमल शैया प्रासन पर सोते बैठते अत्यन्त सुखद, मनोनुकूल विहार भूमि में विचरण करते हुए प्रशस्त दोहद, संपन्नदोहद, सम्मानितदोहद, सत्कारितदोहद, विच्छिन्नदोहद, व्यपनीतदोहद वाली होकर तथा राग, मोह, भय, परित्रास रहित होकर उस गर्भ का सुखपूर्वक पोषण करने लगी। __इस प्रकार से परिपूर्ण नौ मास और साढे सात रात्रि-दिन के बीतने पर प्रभावती देवी ने सुकुमाल हाथ-पैर वाले, निर्दोष प्रतिपूर्ण पंचेन्द्रिययुक्त शरीर वाले तथा लक्षण, व्यंजन और गुणों से युक्त यावत् चन्द्र के समान सौम्य प्राकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन, सुरूप पुत्र का प्रसव किया। 17. तए णं तोसे पभावईए देवीए अङ्गपडियारियाओ पभावई देवि पसूर्य जाणेत्ता जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छन्ति, करयल जाव बलं रायं जएणं विजएणं वद्धान्ति, 2 ता एवं वयासी“एवं खलु, देवाणुप्पिया! पमावईपियट्टयाए पियं निवेदेमो, पियं ते भवउ / ' तए णं से बले रामा अङ्गपडियारियाणं अन्तियं एयम? सोच्चा निसम्म हदुतुटु जाव धाराहयणीव जाव रोमकूवे तासि अङ्गपडियारियाणं मउडवज्जं जहामालियं ओमेयं दलयइ, सेयं रययामयं विमलसलिलपुण्णं भिङ्गारं च गिण्हइ, 2 त्ता मत्थए धोवइ, 2 ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, 2 ता सक्कारेइ संमाणेइ पडिविसज्जेति // [17] तत्पश्चात प्रभावती देवी को अंगपरिचारिकाएँ प्रभावती देवी के पुत्रप्रसव को जानकर जहाँ बल राजा था, वहाँ प्राई। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर यावत जय-विजय शब्दों से बल राजा को बधाई दी। फिर इस प्रकार निवेदन किया--'देवानप्रिय ! प्रभावती देवी की प्रीति के लिए हम प्रिय (समाचार) निवेदन करती हैं। आपको प्रिय हो / ' तब बलराजा ने अंगपरिचारिकामों से इस वृत्तान्त को सुनकर और हृदय में धारण कर हर्षित, संतुष्ट यावत् मेघधारा से सिंचित नीप-कुटज पुष्प के समान रोमांचित हो उन अंगपरिचारिकामों को मुकुट को छोड़कर शेष समस्त धारण किए हुए आभूषण उतारकर पारितोषिक रूप में दे दिए और फिर श्वेत रजतमय निर्मल पानी से भरे हुए भगार-कलश को लिया. लेक उनका मस्तक धोया, अर्थात् उन्हें दासीपन से मुक्त किया। उन्हें जीवननिर्वाह के योग्य विपुल प्रीतिदान देकर सत्कारित-समानित कर विदा किया। 18. तए णं से बले राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, 2 ता एवं वयासी-'खिप्पामेव, भो देवाणुप्पिया! हथिणापुरे नयरे चारगसोहणं करेह, 2 ता माणुम्माणवड्ढणं करेह 2 त्ता हथिणापुरं नगरं सब्भिन्तरबाहिरियं आसियसंमज्जिवलितं जाव करेह कारवेह, 2 ता जूयसहस्सं वा चक्कसहस्सं वा पूयामहामहिमसक्कारं वा उस्सवेह, 2 ता ममेघमाणत्तियं पच्चप्पिणह / तए गं ते कोडुम्बियपुरिसा बलेणं रन्ना एवं वृत्ता जाव पच्चप्पिणन्ति / तए णं से बले राया जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, तं चेव जाव मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ / उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अभिज्जं अभडप्पवेसं अदण्डकोदण्डिमं अधरिमं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org