Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 128] [महाबल नाटक, आठ उत्तम अश्व (घोड़े) दिए जो सभी रत्नों से बने हुए थे और श्रीगह-कोष के प्रतिरूप थे। आठ उत्तम हाथी दिये / ये भी रत्नों के बने हुए और भांडागार के समान शोभासम्पन्न थे। पाठ यान प्रवर (श्रेष्ठ रथ) पाठ उत्तम युग्य (एक प्रकार का वाहन) इसी प्रकार आठ-आठ शिविकाएँ, स्यन, मानी, गिल्ली, थिल्ली (यान विशेष), विकट यान (खुले रथ) पारियानिक (क्रीड़ा रथ), सांग्रामिक रथ (युद्ध में काम आने वाले रथ), आठ अश्व प्रवर, पाठ श्रेष्ठ हाथो, दस हजार घरों वाले श्रेष्ठ पाठ ग्राम, पाठ श्रेष्ठ दास, ऐसे ही पाठ दासी, पाठ उत्तम किंकर, कंचुकी, वर्षधर (अन्तःपुर रक्षक) महत्तरक, पाठ सोने के, पाठचांदो के, पाठ सोने-चांदी के प्रवलंबन दीप (लटकने वाले दीपक-झाड़फानस) पाठ स्वर्ण के, पाठ चांदी के और पाठ स्वर्ण-चांदी के उत्कंचन दीपक (दंड युक्त दीपक-समाई) इसी तरह तीन प्रकार के पंजर दीप, पाठ स्वर्ण के थाल, पाठ चांदी के थाल, पाठ स्वर्ण-रजतमय थाल, पाठ सोने, चांदी और सोने-चांदी की पात्रियां, पाठ तसलियां, आठ मल्लक (कटोरे) पाठ तलिका (रकावियां) आठ कलाचिका (चमचा-सींका) पाठ अवएज (पात्र-विशेष-तापिका हस्तक-संडासी) आठ अवयक्क (चीमटा) आठ पादपीठ (वाजौठ) आठ भिषिका (आसन विशेष) आठ करोटिका (लोटा) आठ पलंग, आठ प्रतिशैया (खाट) पाठ-पाठ हंसासन, कोचासन, गरुडासन, उन्नतासन, प्रणतासन, दीर्घासन, भद्रासन, पक्षासन, मकरासन, दिशासौवस्तिकासन, तथा आठ तेलसमुद्गक आदि राजप्रश्नीय सूत्रगत वर्णन के समान यावत् आठ सर्षपसमुद्गक, आठ कुब्जा दासी, इत्यादि प्रोपपातिक सूत्र के अनुसार यावत् पाठ पारस देश की दासियां, आठ छत्र, आठ छत्रधारिणी चेटिकाएँ, आठ चामर, पाठ चामरधारिणी चेटिकाएँ, आठ पंखे, पाठ पंखाधारिणी चेटिकाएँ, आठ करोटिका धारिणो चेटिकाएँ, पाठ क्षीर धात्रियां (दूध पिलाने वाली धायें ) यावत् पाठ अंकधात्रियां, आठ अंगदिकाएँ, आठ स्नान कराने वालो दासियाँ, आठ प्रसाधन (शृंगार) करने वाली दासियाँ, आठ वर्णक (चंदन आदि विलेपन) पीसने-घिसने वालो दासियां, पाठ चूर्ण पोसने वाली दासियां, आठ कोष्ठागार में काम करने वाली दासियाँ, आठ हास-परिहास करने वालो दासियाँ, पाठ अंगरक्षक दासियाँ, पाठ नृत्य-नाटककारिणी दासियाँ, पाठ कौटुम्बिक दासियाँ (अनुचरी) आठ रसोई बनाने वालो दासियां, पाठ भंडागारिणी (भंडार में काम करने वालो) दासियां, पाठ पुस्तकें आदि पढ़कर सुनाने वाली दासियां, पाठ पुष्पधारिणो दासियां, आठ जल लाने वाली दासियां, पाठ वलिकर्म करने वाली (लौकिक मांगलिक कार्य करने वाली) दासियां, पाठ सेज बिछाने वाली, आठ आभ्यन्तर और पाठ बाह्य प्रतिहारी दासियां, पाठ माला गूथने वालो दासियां, पाठ प्रेषणकारिणी दासियां (संदेशवाहक दासियां) तथा इनके अतिरिक्त बहुत सा हिरण्य, स्वर्ण, वस्त्र और विपुल धन, कनक यावत सारभूत धन-वैभव दिया, जो मात कुलवंश परंपरा तक इच्छानुसार देने, भोग-परिभोग करने के लिए पर्याप्त था / उस महाबल कुमार ने भी अपनी प्रत्येक पत्नी को एक-एक हिरण्य कोटि-स्वर्ण कोटि दी, एक एक उत्तम मुकुट दिया, इस प्रकार पूर्वोक्त सभी वस्तुएं यावत् एक-एक दूती दी तथा बहुत सा हिरण्य-स्वर्ण आदि दिया, जो सात पोढो तक भोगने के लिए पर्याप्त था / 24. तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहनो पसोप्पए धम्मघोसे नामं प्रणगारे जाइसंपन्ने, बण्णओ, जहा केसिसामिस्स, जाव पञ्चहि अणगारसहिं सद्धि संपरिवडे पुठवाणुपुन्धि चरमाणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org