Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [पुष्पचूलिका तए णं सा भूया दारिया व्हाया [जाव] सरीरा चेडीचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, 2 त्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, 2 ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा। ___ तए णं सा भूया दारिया निययपरिवारपरिवुडा रायगिहं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, 2 ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, २त्ता छत्ताईए तित्थयरातिसए पासइ, 2 त्ता धम्मियानो जाणष्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता चेडीचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, 2 ता तिक्खुत्तो [जाव] पज्जुवासइ / तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए भूयाए दारियाए य महइ......." / धम्मकहा / धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ० वन्दइ नमसइ, 2 ता एवं वयासी—'सद्दहामि गं भन्ते ! निग्गंथं पावयणं, जाव अब्भुट्ठमि णं भन्ते ! निग्गंथ पाक्यणं, से जहेयं तुम्भे वयह ज नवरं, मन्ते ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं [जाव] पव्वइत्तए।' 'महासुहं देवाणुप्पिए।' [6] उस काल और उस समय में पुरुषादानीय एवं नौ हाथ की अवगाहना वाले इत्यादि रूप से वर्णनीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पधारे / दर्शन करने के लिए परिषद् निकली। तब वह भूता दारिका इस संवाद को सुनकर हर्षित और संतुष्ट हुई और माता-पिता के पास गई / वहाँ जाकर उसने उनकी अनुमति-प्राज्ञा मांगी-'हे मात-तात ! पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् अनुक्रम से विचरण करते हुए यावत् शिष्यगण से परिवृत होकर विराजमान हैं। अतएव हे माततात ! आपकी आज्ञा-अनुमति लेकर मैं पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत की पादवंदना के लिए जाना चाहती हूँ। माता-पिता ने उत्तर दिया-'देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो।' तत्पश्चात् भूता दारिका ने स्नान किया यावत् शरीर को अलंकृत करके दासियों के समूह के साथ अपने घर से निकली। निकलकर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला (सभाभवन-बैठक) थी, वहाँ पाई और प्राकर उत्तम धार्मिक यान-रथ पर आसीन हई। इसके बाद वह भूता दारिका अपने स्वजन-परिवार को साथ लेकर राजगृह नगर के मध्य भाग में से निकली / निकलकर गुणशिलक चैत्य के समीप आई और पाकर तीर्थंकरों के छत्रादि अतिशय देखे (देखकर धार्मिक रथ से नीचे उतरकर दासी-समूह के साथ जहाँ पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु विराजमान थे, वहाँ पाई / आकर उसने तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा करके वंदना की यावत् पर्युपासना करने लगी। तदनन्तर पुरुषादानीय अर्हत पार्श्व प्रभु ने उस भूता बालिका और अति विशाल परिषद् को धर्मदेशना सुनाई। धर्मदेशना सुनकर और उसे हृदयंगम करके वह हृष्टतुष्ट हुई। फिर भूता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org