Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 152
________________ परिशिष्ट 1] [119 बैठने के पश्चात् अपने उत्तर-पूर्व दिग्भाग-ईशान कोण में श्वेत वस्त्र से आच्छादित तथा सरसों आदि मांगलिक पदार्थों से उपचरित-संस्कारित पाठ भद्रासन रखवाए। और फिर अपने समीप ही अनेक प्रकार के मणिरत्नों से मंडित अतीव दर्शनीय, महामूल्यवान् उत्तम वस्त्र से निर्मित चिकनी, ईहामृग, वृषभ आदि विविध प्रकार के चित्रामों से चित्र विचित्र एक यवनिका डलवाई और उसके अन्दर प्रभावती देवी के लिए भाँति-भाँति के मणिरत्नों से रचित, विचित्र श्वेत वस्त्र से प्राच्छादित, सुखद स्पर्श वाला सुकोमल, गद्दीयुक्त भद्रासन रखवाया और कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा 11. 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अट्ठङ्गमहानिमित्तसुत्तत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह / ' तए णं ते कोडुम्बियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता बलस्स रन्नो अन्तियाओ पडिनिक्खमइ, सिग्धं तुरियं चबलं चण्डं वेइयं हस्थिणापुर नगरं मझमज्झेणं जेणेव तेसि सुविणलक्खणपाढगाणं गिहाई, तेणेव उवागच्छन्ति, 2 त्ता ते सुविणलक्खणपाढए सद्दावेन्ति / तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलस्स रनो कोडुम्बियपुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हद्वतुट्ठ० व्हाया कय० जाव सरीरा सिद्धत्थगहरियालियकयमङ्गलमुद्धाणा सएहितो गिहेहितो निग्गच्छन्ति, हस्थिणापुरं नगरं मझमझेणं जेणेव बलस्स रन्नो भवणवरडिसए तेणेव उवागच्छन्ति, करयल बलरायं जएणं विजएणं कद्धावेन्ति / तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलेणं रना वन्दियपूइप्रसक्कारियसंमाणिया पत्तेयं पत्तेयं पुठवनत्थेसु भद्दासणेसु निसीयन्ति / [11] देवानुप्रियो ! शीघ्र ही सूत्र और अर्थ सहित अष्टांग महानिमित्तों के ज्ञाता, विविधशास्त्रों में प्रवीण स्वप्नलक्षणपाठकों को बुलाओ। तब वे कौटुम्बिक पुरुष प्राज्ञा स्वीकार करके बल राजा के पास से निकले और शीघ्र, त्वरित, चपल और प्रचंड गति से हस्तिनापुर नगर के मध्य में से होते हुए जहाँ स्वप्नलक्षणपाठकों के घर थे, वहाँ पहुँचे और स्वप्नलक्षणपाठकों को बुलाया। तत्पश्चात् उन बल राजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा आमंत्रित किये जाने पर स्वप्नलक्षणपाठक हर्षित एवं संतुष्ट हुए ! स्नान, कौतुक-मंगल प्रायश्चित्त किये हुए यावत् शरीर को अलंकृत कर तथा मस्तक पर सरसों और हरी-दूब से मंगल करके वे अपने-अपने घर से निकले तथा हस्तिनापुर नगर के मध्य भाग से होकर जहाँ बल राजा का श्रेष्ठ राजप्रासाद था, वहाँ आये। आकर दोनों हाथ जोड़ जय-विजय शब्दों से बल राजा को बधाया-उसका अभिवादन किया। तदनन्तर बल राजा द्वारा वंदित, पूजित-सत्कारित और सम्मानित किए हुए वे स्वप्नलक्षणपाठक अपने लिए पहले से रखे हुए भद्रासनों पर बैठे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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