Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ 104] [वह्निदशा - से णं सुरप्पिए जक्खाययणे एगेणं महया वणसण्डेणं सव्वओ समन्ता संपरिविखत्ते जहा पुण्णभद्दे जाव सिलावट्टए / [7] उस रैवतक पर्वत से न अधिक दूर और न अधिक समीप किन्तु यथोचित स्थान पर नन्दनवन नामका एक उद्यान था / वह सर्व ऋतुओं संबन्धी पुष्पों और फलों से समृद्ध, रमणीय नन्दनवन के समान आनन्दप्रद ; दर्शनीय, मनमोहक और मन को आकर्षित करने वाला था। उस नन्दनवन उद्यान के अति मध्य भाग में सुरप्रिय नामक यक्ष का यक्षायतन था / वह अति पुरातन था यावत् बहुत से लोग वहाँ अा-अाकर सुरप्रिय यक्षायतन की अर्चना करते थे। यक्षायतन का वर्णन प्रौपपातिक सूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिए।' वह सुरप्रिय यक्षायतन पूर्णभद्र चैत्य के समान चारों ओर से एक विशाल वनखंड से पूरी तरह घिरा हुअा था, इत्यादि वर्णन भी औपपातिक सूत्र के समान जान लेना चाहिए / यावत् उस वनखण्ड में एक पृथ्वी शिलापट्ट था। द्वारिका नगरी में कृष्ण वासुदेव, बलदेव 8. तत्थ गं बारवईए नयरीए कण्हे नाम वासुदेवे राया परिवसइ / से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसहं दसाराणं, बलदेवपामोक्खाणं पञ्चहं महावीराणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं राईसाहस्सीणं, पज्जुण्णपामोक्खाणं अद्ध द्वाणं कुमारकोडोणं, सम्बपामोक्खाणं सट्ठीए दुद्दन्तसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एक्कवीसाए वीरसाहस्सीणं, रुप्पिणिपामोक्खाणं सोलसण्हं देवीसाहस्सीणं, अणङ्गमेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सोणं अन्नेसि च बहूणं राईसर जाव सत्थवाहप्पमिईणं बेयड्वगिरिसागरमेरागस्स वाहिणभरहस्स आहेवच्चं जाब विहरइ। तत्थ णं बारवईए नयरीए बलदेवे नामं राया होत्था, महया जाव रज्जं पसासेमाणे विहरई / तस्स णं बलदेवस्स रन्नो रेवई नामं देवी होत्था सोमाला जाव विहरइ / तए णं सा रेवई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाय सीहं सुमिणे पासित्ताणं..."", एवं सुमिणसणपरिकहणं, कलाओ जहा महाबलस्स, पन्नासओ दाओ, पन्नासरायकन्नगाणं एगविवसेणं पाणिग्गहणं...""नवरं निसढे नामं, जाव उप्पि पासायं विहरइ / [8] उस द्वारका नगरी में कृष्ण नामक वासुदेव राजा निवास करते थे। वे वहाँ समुद्रविजय आदि दस दसारों का, बलदेव आदि पांच महावीरों का, उग्रसेन आदि सोलह हजार राजाओं का, प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन करोड़ कुमारों का, शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त योद्धानों का, वीरसेन प्रादि इक्कीस हजार वीरों का, रुक्मिणी ग्रादि सोलह हजार रानियों का, अनंगसेना आदि अनेक सहस्र गणिकाओं का तथा इनके अतिरिक्त अन्य बहुत से राजाओं, ईश्वरों यावत् तलवरों, माडविकों, कौटुम्बिकों, इभ्यों, श्रेष्ठियों, सेनापतियों, सार्थवाहों वगैरह का, उत्तर दिशा में वैताढ्य पर्वत पर्यन्त तथा अन्य तीन दिशाओं में लवण समुद्र पर्यन्त दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र का तथा द्वारका नगरी का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178