Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पुष्पिका : पंचम अध्ययन पूर्णभद्र देव . उत्क्षेप 56. जइ णं भन्ते ! समजेणं भगवया जाव पुफियाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स जाव अयम? पन्नत्ते, पंचमस्स णं भन्ते ! अज्झयणस्स पुफियाणं समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं के अट्ठ पन्नत्ते ? [56] भगवन् ! यदि श्रमण यावत निर्वाणप्राप्त भगवान् महावीर ने पुष्पिका नामक उपांग के चतुर्थ अध्ययन का यह भाव प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् ने पुष्पिका के पंचम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? -जम्बू स्वामी ने आये सुधर्मा स्वामी से पूछा। पूर्णभद्र देव का नाट्य-प्रदर्शन 57. एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समयेणं रायगिहे नाम नयरे / गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामो समोसरिए / परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं पुण्णभद्दे देवे सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे समाए सुहम्माए पुण्णभइंसि सोहासणंसि चहि सामाणियसाहस्सीहि, जहा सूरियाभो [जाव] बत्तीसइविहं नट्टविहि उवदंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेवदिसि पडिगए / कूडागारसाला / पुव्वभवपुच्छा। 'एवं खलु गोयमा' तेणं कालेणं तेणं समयेणं इहेव जम्बुद्दीवे दोवे भारहे वासे मणिवइया नाम नयरी होत्था रिद्ध० / चन्दो राया। ताराइण्णे चेहए / तत्थ णं मणिवइयाए नयरीए पुग्णभद्दे नाम गाहावई परिवसइ अड्ड। तेणं कालेणं तेणं समयेणं थेरा भगवन्तो जाइसंपन्ना [जाव] जीवियासमरणभयविष्पमुक्का बहुस्सुया बहुपरिवारा पुवाणुपुर्दियं [जाव] समोसढा / परिसा निग्गया। [57] प्रत्युत्तर में आर्य सुधर्मा स्वामी ने कहा-आयुष्मन् जम्बू ! वह इस प्रकार है उस काल और उस समय राजगह नामक नगर था। गुणशिलक चैत्य था। वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था। स्वामी (भगवान् महावीर) पधारे / परिषद् दर्शन करने निकली। उस काल और उस समय (भगवान् महावीर के राजगृह नगर में पदार्पण होने के समय) सौधर्मकल्प में पूर्णभद्र विमान की सुधर्मा सभा में पूर्णभद्र सिंहासन पर आसीन होकर पूर्णभद्र देव सूर्याभ देव के समान चार हजार सामानिक देवों आदि के साथ दिव्य भोगोपभोगों को भोगता हुप्रा विचर रहा था / उसने अवधिज्ञान से भगवान् को देखा / भगवान् की सेवा में उपस्थित हुआ, वन्दन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org