Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 80] [कल्पिका करती / इसी कारण हे गौतम ! वह बहुपुत्रिका देवी 'बहुपुत्रिका' कहलातो है अथवा उसे 'बहुपुत्रिका देवी' कहते हैं / गौतम स्वामी—'भदन्त ! बहुपुत्रिका देवी की स्थिति कितने काल की है ?' भगवान्–'गौतम ! बहुपुत्रिका देवी को स्थिति चार पल्योपम की है।' गौतम–'भगवन् ! आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर बहुपुत्रिका देवी उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ?' भगवान् –'गौतम ! आयुक्षय आदि के अनन्तर बहुपुत्रिका देवी इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्य पर्वत की तलहटी में बसे विभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका रूप में उत्पन्न होगी। उस बालिका के माता-पिता ग्यारह दिन बीतने पर यावत् बारहवें दिन इस प्रकार का नामकरण करेंगे हमारी इस बालिका का नाम सोमा हो, अर्थात् वे अपनी बालिका का नाम सोमा रखेंगे / सोमा की युवावस्था 46. तए णं सोमा उम्मुक्कबालभावा विन्नयपरिणयमेत्ता जोवणगमणुपत्ता रूवेण य जोवणेण य लावणेण य उक्किट्ठा उक्किटुसरीरा जाब भविस्सइ / तए णं तं सोमं वारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विन्नयपरिणयमेतं जोवणगमणुप्पत्तं पडिकूविएणं सुक्केणं पडिरूबएणं नियगस्स भाइणेज्जस्स रटकूडस्स मारियत्ताए दलइस्सइ / __ साणं तस्स भारिया भविस्सइ इट्ठा कन्ता जाव भण्डकरण्डगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया चेलपेडा इव सुसंपरिहिया रयणकरण्डगो विव सुसारक्खिया सुसंगोविया, मा गं सीयं [जाव] उण्हं... वाइया पित्तिया सम्भिया संन्निवाइया विविहा रोयातङ्का फुसन्तु / [46] तत्पश्चात् वह सोमा बाल्यावस्था से मुक्त होकर, सज्ञानदशापन्न होकर युवावस्था आने पर रूप, यौवन एवं लावण्य से अत्यन्त उत्तम एवं उत्कृष्ट शरीर वाली हो जाएगी। तब माता-पिता उस सोमा बालिका को बाल्यावस्था को पार कर विषय-सख से अभिज्ञ एवं यौवनवस्था में प्रविष्ट जानकर यथायोग्य गृहस्थोपयोगी उपकरणों, धन-ग्राभूषणों और संपत्ति के साथ अपने भानजे राष्ट्रकूट को भार्या के रूप में देंगे अर्थात् राष्ट्रकूट से उसका विवाह कर देंगे। - वह सोमा उस राष्ट्रकूट की इष्ट, कान्त (वल्लभा) भार्या होगी यावत् वह सोमा की भाण्डकरण्डक (प्राभूषणों की पेटी) के समान, तेलकेल्ला (तैलपात्र या इत्रदान) के समान यत्नपूर्वक सुरक्षा करेगा, वस्त्रों के पिटारे के समान उसकी भलीभांति देखभाल करेगा, रत्नकरण्डक के समान उसकी सरक्षा का ध्यान रखेगा और उसको शीत, उष्ण, वात, पित्त, कफ एवं सन्निपातजन्य रोग और प्रातंक स्पर्श न कर सकें, इस प्रकार से सर्वदा चेष्टा करता रहेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org