Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [कल्पिका भवित्ता [जाव] पन्वयाहि / भुजाहि ताव देवाणुप्पिए ! मए सद्धि विउलाई भोगभोगाई, तओ पच्छा भुत्तभोई सुव्वयाणं अज्जाणं अन्तिए मुण्डा [जाव] पम्वयाहि"। तए णं सा सोमा माहणी व्हाया [जाव] सरीरा चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, 2 ता विभेलं संनिवेसं मझमझेणं जेणेव सुब्बयाणं अज्जाणं उवस्सए, तेणेव उवागच्छइ, 2 ता सुव्वयानो प्रज्जाओ वन्दइ, नमसइ, पज्जुवासइ / तए णं तानो सुब्धयाओ अज्जाओ सोमाए माहणीए विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्म परिकहेन्ति जहा जीवा बज्झन्ति / तए णं सा सोमा माहणी सुध्वयाणं अज्जाणं अन्तिए [जाव] दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जइ। सुक्याओ अज्जाबो वंदइ, नमसइ, 2 ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया / तए णं सा सोमा माहणी समणोवासिया जाया अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपाया आसवसंवरनिज्जरकिरियाहिगरणबंधमोक्खकुसला असहिज्जा देवासुरनागसुवण्णरक्खसकिनरकिपुरिसगरुलगन्धब्वमहोरगाईहिं देवगणेहि निग्गन्थानो पावयणाओ प्रणइक्कमणिज्जा निग्गंथे पावयणे निस्संकिपा निक्कंखिया निग्वितिगिच्छा लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा अहिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्ठिमिजम्माणुरागरत्ता अयमाउसो निग्गंथे पावणे अट्ठे अयं परमठे सेसे प्रणळे, ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तन्तेउरघरप्पवेसा चाउद्दसट्ठमुद्दिष्ट-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणा समणे निग्गथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पोडफलगसेज्जासंथारेणं बस्थपडिग्गहकंबलपायपुञ्छणेणं भोसहभेसज्जेणं पडिलाभेमाणा पडिलाभेमाणा बहूहि सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहि य अप्पाणं भावमाणी विहरइ। तए णं ताओ सुब्वयाओ प्रज्जाओ अन्नया कयाइ विभेलाओ संनिवेसाओ पडिनिक्खमन्ति, 2 त्ता बहिया जणवयविहारं विहरति / [51] तत्पश्चात् वह सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकट के निकट जाकर दोनों हाथ जोड़ आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहेगी-देवानुप्रिय ! मैंने आर्याओं से धर्मश्रवण किया है और वह धर्म मुझे इच्छित-प्रिय है यावत् रुचिकर लगा है। इसलिए देवानुप्रिय ! आपकी अनुमति लेकर मैं सुव्रता आर्या से प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ। तब राष्ट्रकूट सोमा ब्राह्मणी से कहेगा–देवानुप्रिये ! अभी तुम मुंडित होकर यावत् घर छोड़कर प्रवजित मत होओ किन्तु देवानुप्रिये ! अभी तुम मेरे साथ विपुल कामभोगों का उपभोग करो और भुक्तभोगी होने के पश्चात् सुव्रता आर्या के पास मुडित होकर यावत् गृहत्याग कर प्रवजित होना। राष्ट्रकूट के इस सुझाव को मानने के पश्चात् सोमा ब्राह्मणी स्नान कर, कौतुक मंगल प्रायश्चित्त कर यावत प्राभरण-अलंकारों से अलंकृत होकर दासियों के समूह से घिरी हई अपने घर से निकलेगी। निकलकर विभेल सन्निवेश के मध्यभाग को पार करती हुई सुव्रता आर्याओं के उपाश्रय में आएगी / पाकर सुव्रता आर्यात्रों को वंदन-नमस्कार करके उनकी पर्युपासना करेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org