Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 24] [निरयावलिकासूत्र निच्चेटु जीवविप्पजढं प्रोइण्णं पासइ, 2 ता महया पिइसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चम्पगवरपायवे धस त्ति धरणीयलंसि सवङ्ग हिं संनिवडिए / तए णं से कूणिए कुमारे मुहुत्तन्तरेण आसत्थे समाणे रोयमाणे कन्दमाणे सोयमाणे विलवमाणे एवं वयासी-"अहो णं मए अधन्नेणं अपुग्णणं अकयपुण्णणं दुठुकयं सेणियं रायं पियं देवयं अच्चन्तनेहाणुरागरत्तं नियलबन्धणं करन्तेणं / मममूलागं चेव णं सेणिए:राया कालगए" त्ति कटु राईसरतलवर जाव माडम्बिग-कोडुम्बिय-इन्भ-सेट्ठिसेणावइ-सत्यवाह-मान्ति-गणगदोबारिय-प्रमच्च-चेड-पोढमद-नगर-निगम-दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे सोयमाणे विलबमाणे महया इनोसक्कारसमुदएणं सेणियस्स रन्नो नीहरणं * करेइ। तए णं से कूणिए कुमारे एएणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे अन्नया कयाइ अन्तेउरपरियाल-संपरिवुडे सभण्डमत्तोवगरणमायाए रायगिहाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव चम्पानयरी तेणेव उवागच्छइ, तत्थ वि णं विउलभोगसमिइसमानागए कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था। तए णं से कूणिए राया अन्नया कयाइ कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ, 2 त्ता रज्जं च जाव रटु च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च अंतेउरं च जणवयं च एक्कारसभाए विरिञ्चइ, 2 ता सयमेव रज्जसिरि करेमाणे पालेमाणे विहरइ / [21] श्रेणिक राजा ने हाथ में कुल्हाड़ी लिए कृणिक कुमार को अपनी ओर आते देखा / देखकर मन ही मन विचार किया-यह मेरा बुरा–विनाश चाहने वाला, यावत् कुलक्षण, अभागा, कृष्णाचतुर्दशी को उत्पन्न, लोक-लाज से रहित, निर्लज्ज कूणिक कुमार हाथ में कुल्हाड़ी लेकर इधर ग्रा रहा है। न मालम मुझे यह किस क मौत से मारे ! इस विचार से उसने भीत, त्रस्त भयग्रस्त, उद्विग्न और भयाक्रान्त होकर तालपुट विष को मुख में डाल लिया। तदनन्तर तालपुट विष को मुख में डालने और मुहूर्तान्तर के बाद-कुछ क्षणों में उस विष के (शरीर) में व्याप्त होने पर श्रेणिक राजा निष्प्राण, निश्चेष्ट, निर्जीव हो गया। इसके बाद वह कूणिक कुमार जहां कारावास था, वहाँ पहुँचा। पहुंचकर उसने श्रेणिक राजा को निष्प्राण निश्चेष्ट, निर्जीव देखा / तब वह दुस्सह, दुद्धर्ष पितृशोक से विलविलाता हश्रा कुल्हाड़ी से काटे चम्पक वृक्ष की तरह धड़ाम-से पूरी तरह पछाड़ खाकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। कुछ क्षणों के पश्चात् कूणिक कुमार प्राश्वस्त-सा हुआ और रोते हुए, प्राकदन, शोक एवं विलाप करते हुए इस प्रकार कहने लगा--अहो ! मुझ अधन्य, पुण्यहीन, पापी अभागे ने बुरा कियाबहुत बुरा किया जो देवतारूप, अत्यन्त स्नेहानुराग-युक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को कारागार में डाला। मेरे कारण ही श्रेणिक राजा कालगत हुए हैं / तदनन्तर ऐश्वर्यशाली पुरुषों, तलवर राज्यमान्य पुरुषों, मांडलिक, जागीरदारों, कौटुम्बिक-प्रमुख परिवारों के मुखिया, इभ्य-कोट्यधीश धनपति-श्रीमंत, श्रेष्ठी-समाज में प्रमुख माने जाने वाले, सेनापतियों, मंत्री, गणक-ज्योतिषी द्वारपाल अमात्य, चेट-सेवक, पोठमर्दक-अंगरक्षक, नागरिक, व्यवसायी, दूत, संधिपाल-राष्ट्र के सीमान्त प्रदेशों के रक्षक आदि विशिष्ट जनों से संपरिवृत होकर रुदन, प्राक्रन्दन शोक और विलाप करते हुए महान् ऋति, सत्कार एवं अभ्युदय के साथ श्रेणिक राजा का अग्निसंस्कार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org