Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 36] [निरयावलिकासूत्र तए णं नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो चेडगं रायं एवं वयासी--"न एवं सामी ! जुत्तं वा पत्तं वा रायसरिसंवा, जं णं सेयणगं अट्ठारसवंकं कुणियस्स रन्नो पच्चप्पिणिज्जइ, वेहल्ले य कुमारे सरणागए पेसिज्जइ / तं जइ णं कूणिए राया चाउङ्गिणीए सेणाए सद्धि संपरिबुडे जुद्धसज्जे इहं हव्वमागच्छइ, तए गं अम्हे कूणिएणं रग्ना सद्धि जुज्झामो।" तए णं से चेडए राया ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो एवं वयासीजइ णं देवाणुप्पिया, तुभे कूणिएणं रम्ना सद्धि जुज्झह, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया, सएसु 2 रज्जेसु, व्हाया जहा कालाईया [जाव] जएणं विजएणं वद्धावन्ति / तए णं से चेडए राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, 2 ता एवं वयासो--"आभिसेक्कं जहा कूणिए" [जाव] दुरुढे / [31] राजा कुणिक का युद्ध के लिए प्रस्थान का समाचार जानकर चेटक राजा ने काशी कोशल देशों के नौ लिच्छवी और नौ मल्लकी इन अठारह गण-राजाओं को परामर्श करने हेतु आमंत्रित किया और उनके एकत्र होने पर कहा--देवानुप्रियो ! बात यह है कि कूणिक राजा को विना जताए-कहे-सने वेहल्ल कुमार सेचनक हाथी और अठारह लडों का हार लेकर यहाँ मा गया है। किन्तु कणिक ने सेचनक हाथी और अठारह लड़ों के हार को वापिस लेने के लिए तीन दूत भेजे। किन्तु मैंने इस कारण अर्थात् अपनी जीवित अवस्था में स्वयं श्रेणिक राजा ने उसे ये दोनों वस्तुएं प्रदान की हैं, फिर भी हार-हाथी चाहते हो तो उसे प्राधा राज्य दो, यह उत्तर देकर उन दूतों को वापिस लौटा दिया / तब कणिक मेरी इस बात को न सुनकर और न स्वीकार कर चतुरंगिणी सेना के साथ युद्धसज्जित होकर यहाँ आ रहा है। तो क्या देवानुप्रियो ! सेचनक हाथी और अठारह लड़ों का हार वापिस कूणिक राजा को लौटा दें ? वेहल्लकुमार को उसके हवाले कर दें ? अथवा युद्ध करें? तब उन काशी-कोशल के नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी--अठारह गणराजाओं ने चेटक राजा से इस प्रकार कहा-स्वामिन् ! यह न तो उचित है-युक्त है, न अवसरोचित है और न राजा के अनुरूप ही है कि सेचनक और अठारह लड़ों का हार कणिक राजा को लौटा दिया जाए और शरणागत वेहल्लकुमार को भेज दिया जाए। इसलिए जब कूणिक राजा चतुरंगिणी सेना को लेकर युद्धसज्जित होकर यहाँ पा रहा है तब हम कणिक राजा के साथ युद्ध करें। इस पर चेटक राजा ने उन नौ लिच्छवी, नौ मल्ली काशी-कोशल के अठारह गण-राजाओं से कहा- यदि आप देवानुप्रिय कूणिक राजा से युद्ध करने के लिए तैयार हैं तो देवानुप्रियो ! अपने अपने राज्यों में जाइए और स्नान आदि कर कालादि कुमारों के समान यावत् [युद्ध के लिए सुसज्जित होकर अपनी-अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ यहाँ चम्पा में आइए। यह सुनकर अठारहों राजा अपने-अपने राज्यों में गए और युद्ध के लिए सुसज्जित होकर पाए / आकर उन्होंने चेटक राजा को जय-विजय शब्दों से बधाया] __उसके बाद चेटक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर यह आज्ञा दीप्राभिषेक्य हस्तिरत्न को सजाप्रो आदि कूणिक राजा की तरह यावत् चेटक राजा हाथी पर आरूढ हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org