Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ वर्ग 3 : तृतीय अध्ययन [59 बनाने वाले हैं तथा आतापना और पंचाग्नि ताप से अपनी देह को अंगारपक्व' और कंदुपक्व' जैसी बनाते हुए समय यापन करते हैं। ___ इन तापसों में से मैं दिशाप्रोक्षिक तापसों में दिशाप्रोक्षिक रूप से प्रवजित होऊँ और प्रवजित होने के पश्चात इस प्रकार का यह अभिग्रह अंगीकार करूंगा-'यावज्जीवन के लिए निरंतर षष्ठ-षष्ठभक्त (वेला-बेला) पूर्वक दिशा चक्रवाल तपस्या करता हुआ सूर्य के अभिमुख भुजाएँ उठाकर आतापनाभूमि में प्रातापना लूंगा।' उसने इस प्रकार का संकल्प किया और संकल्प करके यावत् कल (आगामी दिन) जाज्वल्यमान सूर्य के प्रकाशित होने पर बहुत से लोह-कड़ाहों आदि को लेकर यावत् दिशाप्रोक्षिक तापस के रूप में प्रवजित हो गया। प्रवजित होने के साथ इस प्रकार का यह (पूर्व में निश्चय किया हुआ) अभिग्रह अंगीकार करके .प्रथम षष्ठक्षपण तप अंगीकार करके विचरने लगा। सोमिल की दिशाप्रोक्षिक साधना 17. तए गं सोमिले माहणे रिसो पढमछट्टक्खमणपारणंसि पायावणभूमीए पच्चोरुहइ, 2 त्ता बागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए, तेणेव उवागच्छइ, 2 ता किढिणसंकाइयं गेण्हइ, 2 ता पुरस्थिमं दिसि पुक्खेइ, "पुरस्थिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सोमिलमारिसि / जाणि य तत्थ कन्दाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाण" त्ति कटु पुरस्थिमं दिसं पसरह, २त्ता जाणि य तत्थ कन्दाणि य [जाव] हरियाणि य ताइं गेहइ, 2 ता किढिणसंकाइयगं भरेइ, २त्ता दम्भे य कुसे य पत्तामोडं च समिहाओ कट्ठाणि य गेण्हइ, 2 त्ता जेणेव सए उडए, तेणेव उवागच्छइ, 2 ता किढिणसंकाइयगं ठवेइ, 2 ता वेई वढेइ, 2 त्ता उबलेवणसंमज्जणं करेइ, 2 त्ता दमकलस-हत्थगए जेणेष गङ्गा महाणई तेणेव उवागच्छइ २त्ता गङ्ग महाणइं ओगाहइ 2 ता जलमज्जणं करेइ, 2 त्ता जलकिड्ड करेइ, 2 ता जलाभिसेयं करेइ, 2 त्ता आयन्ते चोक्खे परमसुइभूए देवपिउकयकज्जे दमकल. सहत्थगए गङ्गाओ महाणईओ पच्चुत्तरइ, 2 ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, २त्ता दम्भे य कुसे य वालुयाए य बेई रएछ, 2 ता सरयं करेइ, 2 ता अरणि करेइ, 2 सा सरएणं अरणि महेइ 2 त्ता अग्गि पाडेइ, 2 ता अग्गि संधुक्केइ, २त्ता समिहा कट्टाणि पक्खिवइ, २त्ता अग्गि उज्जालेइ, 2 त्ता अग्गिस्त्र दाहिणे पासे सत्तलाई समावहे / तं जहा-सकथं वक्कलं ठाणं, सेज्जभण्डं कमण्डलु। दण्डदार तहप्पाणं, अह ताई समादहे // 1 // महुणा य घएण य तन्दुलेहि य अग्गि हुणइ / चरु साहेइ, 2 ता बलिवइस्सदेवं करेइ 2 ता अतिहिपूयं करेइ, 2 त्ता तो पच्छा अप्पणा पाहारं पाहारेइ / 1. अपने चारों ओर अग्नि जलाकर तथा पांचवें सूर्य की प्रातापना से अपनी देह को अंगारों में पकी हई सी। 2. भाड़ में भूनी हुई सी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org