Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [निरयावलिकासूत्र सुकुमालगंधकासाइयलूहियङ्ग प्रहयसुमहाघदूसरयणसुसंवुए सरससुरभिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते सुइमालावण्णगविलेवणे आधिद्धमणिसुवणे कप्पियहारबहारतिसरयपालम्बपलम्बमाणकडिसुत्तसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जे अङ गुलेज्जगललियङ्गललियकयाहरणे नाणामणिकडगतुडियथम्भिय भुए अहिह्यरूवसस्सि रोए कुण्डलुज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकतरइयवच्छे पालम्बपलम्बमाणसुकयपउउत्तरिज्जे मुद्दियापिङ्गलङ गुलीए नाणामणिकणगरयणविमलमहरिहनिउणोधिय-मिसिमिसन्तविरइयसुसिलिट्ठविसिटुलटुसंठियपसत्थआविद्धवीरबलए, कि बहुणा, कप्परुक्खए चेव सुअलंकियविभूसिए नरिंदे सकोरिटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उभओ चउचामरवालवीइयङ्ग मङ्गलजयसद्दकयालोए अणेगगणनायगदण्डनायगराईसरतलवरमाडम्बियकोडुम्बियमन्तिमहामन्तिगणगदोवारियअमच्चचेडपीढमहनगरनिगमसे द्विसेणावइसत्थवाहदूयसंधिवालसद्धि संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए विव गहगणदिप्पन्ततारागणाण मज्झे ससि व्व पियदंसणे नरवई मज्झणघरानो पडिनिग्गच्छइ पडिनिग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जाय नरवई दुरूढे / तए णं से कूणिए राया तिहिं दन्तिसहस्सेहि जाव रवेणं चम्पं नार मज्झमझेणं निग्गच्छइ, २त्ता जेणेव कालाईया दस कुमारा तेणेव उवागच्छा, 2 त्ता कालाइएहिं दसहिं कुमारहिं सद्धि एगओ मेलायन्ति / तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दन्तिसहस्सेहि तेत्तीसाए आससहस्सेहिं तेत्तीसाए रहसहस्सेहि तेत्तीसाए मणुस्सकोडोहिं सद्धि संपरिबुडे सव्विड्डीए [जाव] रवेणं सुहेहि वसईहिं सुहेहिं पायरासेहि नाइविगिट्ठहिं अन्तरावासेहि वसमाणे 2 अङ्गजणवयस्स मज्झमझेणं जेणेव विदेहे जणयए, जेणेव वेसाली नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। [30] काल आदि दस कुमारों की उपस्थिति के अनन्तर कुणिक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषोंसेवकों को बुलाया और बुलाकर उनको यह आज्ञा दी–देवानुप्रियो ! शीघ्र ही आभिषेक्य हस्तीरत्न-हाथियों में प्रधान श्रेष्ठ हाथी को प्रतिकर्मित-सुसज्ज कर, घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से सुगठित चतुरंगिणी सेना को सुसन्नद्ध-युद्ध के लिए तैयार करो और फिर मेरी इस प्राज्ञा को वापस लौटायो-मुझे सूचित करो कि आज्ञानुपालन हो गया।' यावत् वे सेवक आज्ञानुरूप कार्य सम्पन्न होने की सूचना देते हैं / तत्पश्चात् कणिक राजा जहाँ स्नानगृह था वहाँ आया यावत् स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ। प्रवेश करके मोतियों के समूह से युक्त होने से मनोहर, चित्र-विचित्र मणि-रत्नों से खचित फर्श वाले, रमणीय, स्नान-मंडप में विविध मणि-रत्नों के चित्रामों से चित्रित स्नानपीठ पर सुखपूर्वक बैठकर उसने सुखद-शुभ, पुष्पोदक से, सुगंधित एवं शुद्ध जल से कल्याणकारी उत्तम स्नान-विधि से स्नान किया। स्नान करने के अनन्तर अनेक प्रकार के सैकड़ों कौतुक-मंगल किए तथा कल्याणप्रद प्रवर स्नान के अंत में पक्ष्मल-रुएँदार काषायिक मुलायम वस्त्र से शरीर को पौंछा। नवीन-कोरे महा मूल्यवान् दूध्य रत्न (उत्तम वस्त्र) को धारण किया; सरस, सुगंधित गोशीर्ष चंदन से अंगों का लेपन किया। पवित्र माला धारण की, केशर आदि का विलेपन किया, मणियों और स्वर्ण से निर्मित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org