Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ वर्ग 1: प्रथम अध्ययन]] चेटक राजा का युद्धक्षेत्र में प्रागमन 32. तए णं से चेडए राया तिहि दन्तिसहस्सेहि, जहा कुणिए [जाव] वेसालि नरि मझमझेणं निग्गच्छइ, २त्ता जेणेव ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाओ तेणेव उवागच्छद। तए णं से चेडए राया सत्तावनाए दन्तिसहस्सेहि, सत्तावन्नाए आससहस्सेहि, सत्तावनाए रहसहस्सेहि सत्तावनाए मणुस्सकोडीहिं सद्धि संपरिवुडे सविड्ढोए जाव रवेण सुहेहि वसहीहि पायरासेहिं नाइविगिट्ठहि अन्तर्राहि वसमाणे 2 विदेहं जणवयं मज्झमशेणं जेणेव देसप्पन्ते तेणेव उवागच्छइ, 2 ता खन्धावारनिवेसणं करेइ, 2 त्ता कूणियं रायं पडिवालेमाणे जुद्धसज्जे चिट्ठइ / ___ तए णं से कूणिए राया सविड्डीए [जाव] रवेणं जेणेव देसप्पन्ते तेणेव उवागच्छइ, 2 त्ता चेडयस्स रन्नो जोयणन्तरिय खन्धावारनिवेसं करेइ / [32] अठारहों गण-राजाओं के आ जाने के पश्चात् चेटक राजा कुणिक राजा की तरह तीन हजार हाथियों आदि के साथ वैशाली नगरी के बीचोंबीच होकर निकला / निकलकर जहाँ वे नौ मल्ली, नौ लिच्छवी काशी-कोशल के अठारह गण राजा थे, वहाँ पाया। तदनन्तर चेटक राजा सत्तावन हजार हाथियों, सत्तावन हजार घोड़ों, सत्तावन हजार रथों और सत्तावन कोटि मनुष्यों को साथ लेकर सर्व ऋद्धि यावत् वाद्यधोष पूर्वक सुखद वास, प्रातः कलेवा और निकट-निकट विश्राम करते हुए विदेह जनपद के बीचोंबीच से चलते हुए जहाँ सोमान्तप्रदेश था, वहाँ आया। पाकर स्कन्धावार का निवेश किया---पड़ाव डाल दिया तथा कूणिक राजा की प्रतीक्षा करते हुए युद्ध को तत्पर हो ठहर गया / इसके बाद कुणिक राजा समस्त ऋद्धि-वैभव यावत् कोलाहल के साथ जहाँ सीमांतप्रदेश था, वहाँ पाया / पाकर चेटक राजा से एक योजन की दूरी पर उसने भी स्कन्धावारनिवेष किया / युद्धार्थ व्यूह-रचना 33. तए णं ते दोन्नि वि रायाणो रणभूमि सज्जावेन्ति, 2 ता रणभूमि जयन्ति / तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दन्तिसहस्सेहिं जाव मणुस्सकोडीहि गरुलवूहं रएइ 2 ता गरुलवूहेणं रहमुसलं संगामं उवायाए / तए णं से चेडगे राया सत्तावन्नाए दन्तिसहस्सेहिं [जाव] सत्तावन्नाए मणुस्सकोडोहिं सगडवूह रएइ, 2 ता सगडवूहेणं रहमुसलं संगाम उवायाए / . तए णं ते दोण्ह वि राईणं अणीया संनद्ध [जाध] गहियाउहपहरणा मंगतिएहि फलहि, निक्किट्ठाहि असीहि, अंसागएहिं तोणेहि, सजीवेहि धहिं, समुक्खिहि सरेहि, समुल्लालियाहि डावाहि, ओसारियाहि उरुघण्टाहि, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठसोहनायबोलकलकलरवेण समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा सव्विड्डीए जाव रवेणं हयगया हयगहि, गयगया गयगएहि, रहगया रहगएहि, पायत्तिया पायत्तिएहि अन्नमन्नेहिं सद्धि संपलग्गा यावि होत्था / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org