Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ वर्ग 1: प्रथम अध्ययन] [29 स्वामिन् ! आप कूणिक राजा को अनुगृहीत करते हुए सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को वापिस लौटा दें। साथ ही वेहल्ल कुमार को भेज दें।' कुणिक राजा की इस प्राज्ञा को दोनों हाथ जोड़ कर यावत् स्वीकार करके दूत जहाँ अपना घर था, वहाँ आया / आकर चित्त सारथी के समान यावत् प्रातःकलेवा करता हुआ अति दूर नहीं किन्तु पास-पास अन्तरावास-पड़ाव-विश्राम करते हए जहाँ वैशाली नगरी थी वहाँ अाया। पाकर वैशाली नगरी के बीचों बीच होकर जहाँ चेटक राजा का आवासगृह था और जहाँ उसकी बाह्य उपस्थान शाला (सभाभवन) थी, वहाँ पहुँचा / पहुंचकर घोड़ों को रोका, रथ को खड़ा किया और रथ से नीचे उतरा। तदनन्तर बहुमूल्य एवं महान् पुरुषों के योग्य उपहार लेकर जहाँ प्राभ्यन्तर सभाभवन था, उसमें जहाँ चेटक राजा था, वहाँ पहुंचा। पहुंचकर दोनों हाथ जोड़ यावत् 'जय-विजय' शब्दों से और बधाकर इस प्रकार निवेदन किया-'स्वामिन ! कणिक राजा प्रार्थना करते हैंवेहल्लकुमार हाथी और हार लेकर कणिक राजा की आज्ञा बिना यहाँ चले आए हैं इत्यादि, यावत् हार, हाथी और वेहल्लकुमार को वापिस भेजिए / चेटक राजा का उत्तर 26. तए णं से चेडए राया तं दूयं क्यासी-"जह चेव णं देवाणुप्पिया, कूणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए प्रत्तए ममं नत्तुए, तहेव णं वेहल्ले वि कुमारे सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए, मम नत्तुए / सेणिएणं रम्ना जीवन्तेणं चेव वेहल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थी अट्ठारसवंके य हारे पुवविइण्णे / तं जइ गं कृणिए राया बेहल्लस्स रज्जस्स य जणवयस्स य अद्ध दलयइ तो गं अहं सेयणगं अट्ठारसवंक हारं च कुणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामि, वेहल्लं च कुमार पेसेमि / " तं दूयं सक्कारेइ संमाणेइं पडिविसज्जेइ / तए णं से दूए चेउएणं रन्ना पडिविसज्जिए समाणे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे, तेणेव उवागच्छइ, २त्ता चाउग्घंटे प्रासरहं दुरुहइ, वेसालि नयरि मज्झमज्भेणं निग्गच्छइ, 2 त्ता सुहेहि वसहीहि [जाव] वडावेत्ता एवं क्यासी-एवं खल, सामी, चेडए राया प्राणवेइ--'जह चेव णं कूणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते, चेल्लणाए देवीए अत्तए, मम नत्तुए, तं चेव भाणियव्वं जाव, वेहल्लं च कुमारं पेसेमि' / तं न देइ गं सामी, चेडए राया सेयणगं अट्ठारसर्वक हारं च, वेहल्लं च नो पेसेइ"। ___तए णं से कूणिए राया दोच्चं पि दूयं सहावेत्ता एवं वयासो-'गच्छह णं तुमं, देवाणुप्पिया ! वेसालि नरिं / तत्थ णं तुमं मम अज्जगं चेडगं रायं जाव एवं क्याही--एवं खलु, सामी, कूणिए राया विनवेइ-"जाणि काणि रयणाणि समुष्पज्जन्ति, सम्वाणि ताणि रायकूलगामीणि / सेणियस्स रन्नो रज्जसिरिं करेमाणस्स पालेमाणस्स दुवे रयणा समुप्पन्ना, तं जहा-सेयणए गंधहत्थी, अट्ठारसवंके हारे / तं गं तुम्भे सामी, रायकुलपरंपरागयं ठिइयं प्रलोवेमाणा सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणह, वेहल्लं कुमारं पेसेह' / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org