Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 14] [निरयावलिकासूत्र ___तए णं सेणिए राया तासि अङ्गमडियारियाणं अन्तिए एयम सोच्चा निसम्म तहेव संभन्ते समाणे जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ 2 ता चेल्लणं देवि सुक्कं भुक्खं [जाव] झियायमाणि पासित्ता एवं क्यासी-"fक णं तुमं देवाणुप्पिए ! सुक्का भुक्खा जाव झियासि ?" तए णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रन्नो एयम नो पाढाइ, नो परियाणाइ, तुसिणिया संचिट्ठइ। . तए णं से सेणिए राया चेल्लणं देवि दोच्चं पि तच्चपि एवं क्यासी-किं णं अहं देवाणुप्पिए, एयम नो अरिहे सवणयाए, जं णं तुमं एयमट्ठ रहस्सीकरेसि ?" तए णं सा चेल्लणा देवी सेणिएणं रन्ना दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ता समाणी सेणियं रायं एवं वयासी-नस्थि णं सामी! से केइ अट्ट, जस्स गं तुब्भे अणरिहे सवणयाए, नो चेव णं इमस्स अट्ठस्स सवणयाए / एवं खलु सामो! ममं तस्स ओरालस्स [जाब] महासुमिणरस तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउन्मूए 'धन्नानो णं ताओ अम्मयाओ, जाओ णं तुम्भं उपरवलिमंसेहि सोल्लएहि य [जाव] दोहलं विणेन्ति / ' तए णं अहं, सामी ! तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा जाव झियामि / " [12] तत्पश्चात् परिपूर्ण तीन मास बीतने पर चेलना देवी को इस प्रकार का दोहद (गर्भवती माता का विशेष मनोरथ) उत्पन्न हुआ-वे माताएँ धन्य हैं यावत् वे पुण्यशालिनी हैं, उन्होंने पूर्व में पुण्य उपाजित किया है, उनका वैभव सफल है, मानवजन्म और जीवन का सुफल प्राप्त किया है जो श्रेणिक राजा की उदरावली के शूल पर सेके हुए, तले हुए, भूने हुए मांस का तथा सुरा यावत् मधु, मेरक, मध, सीधु और प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन यावत् विस्वादन तथा उपभोग करती हुई और अपनी सहेलियों को आपस में वितरित करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं—अपनी अभिलाषा को तृप्त करती हैं। किन्तु इस अयोग्य एवं अनिष्ट दोहद के पूर्ण न होने से चेलना देवी (मनः-संताप के कारण रक्त का शोषण हो जाने से) शुष्क-सूखी-सी हो गई, भूख से पीड़ित-सी हो गई, मांसरहित हो गई, जीर्ण और जीर्ण शरीर वाली हो गई, निस्तेज-निष्प्रभ दीन, विमनस्क जैसी हो गई, विवर्णमुखी, नेत्र और मुखकमल को नमाकर यथोचित पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकारों का उपभोग नहीं करती हुई, हथेलियों से मसलो हुई कमल की माला जैसी मुरझाई हुई, पाहतमनोरथा यावत् चिन्ताशोक-सागर में निमग्न हो, हथेली पर मुख को टिकाकर प्रार्तध्यान में डूब गई। तब चेलना देवी की अंगपरिचारिकामों (प्राभ्यन्तर दासियों) ने चेलना देवी को सूखी-सी, भूख से ग्रस्त-सी यावत् चिन्तित देखा / देखकर वे श्रेणिक राजा के पास पहुँची। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर प्रावर्तपूर्वक, मस्तक पर अंजलि करके श्रेणिक राजा से इस प्रकार निवेदन किया'स्वामिन् ! न मालूम किस कारण से चेलना देवी शुष्क बुभुक्षित जैसी होकर यावत् अार्तध्यान में डूबी हुई हैं। श्रेणिक राजा उन अंगपरिचारिकाओं की इस बात को सुनकर और समझकर आकुल-व्याकुल होता हुआ, जहाँ चेलना देवो थी, वहाँ आया। चेलना देवो को सूखी-सो, भूख से पीड़ित जैसी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org