Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Bindubai Mahasati, Rupalbai Mahasati, Artibai Mahasati, Subodhikabai Mahasati
Publisher: Guru Pran Prakashan Mumbai
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व्यावहारिक विवेकका अभाव होने के कारण जो जो प्रयोग किये उसमें क्रूरता आयी, प्रयोग करने का कारण (इरादा) ठीक होने पर भी क्रिया ठीक नहीं थी। क्रियाप्रधान कारण से जो फलश्रुति मिले इससे ज्यादा कारणप्रधान क्रिया से अधिक फलश्रुति मिलती है ।
श्री उत्तराध्ययन सूत्र में 'केशी-गौतम' संवाद के द्वारा उज्जुपन्ना और वंकजडा प्रकृति की दो भिन्न भिन्न परंपरा के आंशिक बदलाव का सामंजस्य या समन्वय बताया है । उसी सूत्र के एक अध्ययन में श्री नमिराजर्षि और इन्द्रका संवाद भी आता है । सामान्यतया प्रश्नोत्तर वादविवाद के लिये होते है... उसे सवाद तक ले जाकर आसन्न स्थितिओ का तालमेल बिठाया जाता है। ये अध्ययन में इस बात का स्पष्टीकरण इन्द्र के साथ हुए संवाद से हमें मिलता है।
प्रस्तुत आगम में राजा प्रदेशी और केशीस्वामी का संवाद है। राजा प्रदेशी ने भिन्न भिन्न प्रयोग करके आत्मा को खोजा, लेकिन उसको समाधान उलटा ही मिला अंत में यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी इस सूक्ति अनुसार राजा प्रदेशी को केशीस्वामी का सम्मिलन हुआ। राजा प्रदेशी के आत्मा विषयक प्रश्न और केशीस्वामी के प्रत्युत्तर- हमारी सब की दौलत बन गयी ।
राजा प्रदेशी का समाधान हुआ, सम्यक मार्ग पर आये । इस प्रेरणादायी आगम श्री राजप्रश्नीय सूत्र का भावानुवाद और भाषानुवाद करने का सौभाग्य प्राण परिवार की साध्वीरत्ना बिन्दुजी एवं रुपलजी को प्राप्त हुआ यह आनन्द की बात है । उस साध्वीद्वय का प्रयास प्रशंसनीय है । मैं अंतरके भाव से आशीर्वाद देता हूँ। पूर्वाचार्यों द्वारा विवेचित एवं प्रेरित आगम दोहन का अपने क्षयोपशमानुसार सेवा करते हए उन्होने जो भाषानुवाद किया है, वह आज की पेढी के लिये और आने वाली पीढ़ियों के लिये आत्म साधना और आराधना के लिये प्रेरणास्रोत रूप सुसेव्य होगा ।
सौराष्ट्र केशरी पूज्यपाद गुरुदेव श्री 'प्राणगुरु' की मंगलमय स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिये श्री गुरुप्राण फाउण्डेशन और प्राणगुरुकुल की सभी विदुषी साध्वी रत्नाओं की आगम सेवा स्तुत्य है । मैं उन सभी को धन्यवाद के साथ सद्भावना प्रेषित करता हूँ ।
- साधक
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