Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Author(s): Bindubai Mahasati, Rupalbai Mahasati, Artibai Mahasati, Subodhikabai Mahasati
Publisher: Guru Pran Prakashan Mumbai
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साधक हृदय के अंतर्भाव
ध्यानयोगी बा. ब्र. पू. हसमुख मुनि म. सा.
जैनदर्शन मान्य आगम या शास्त्र धर्म की बहुमूल्य पूंजी है । निगोद से निर्वाण तक की यात्रा में प्रत्येक भव में जीवको उसकी उपलब्धि नहीं होती, परंतु जहाँ जहाँ होती है वहाँ वह चिनगारी बनकर अंत:करण के दीपक को प्रकटाने में सहायक बनती है । आगम हमें ध्रुवसंकेत देता है और इससे हमारे जीवन की राह खुलती है ।
'महापुढषों का योगबल जगत का कल्याण करे ।' यह भावनात्मक वाक्य हमें उन महापुढषों की ओर श्रद्धान्वित करता है जिन्होंने अपने योगबल से जगत के लिये ज्ञान प्रेषित किया है, जो ग्रंथ और शास्त्र के रूपमें हमारे सामने है। आगम तीर्थंकरो द्वारा प्रेषित है। तीर्थंकरो के योग, उपयोग और ज्ञान तीनों जब मिलते हैं तब आगम की स्फूरणा होती है । हम आगम से हमारे क्षयोपशमानुसार अर्थ निकालते हैं, लेकिन वह अर्थ तो सिन्धु में बिन्दु समान होता है ।
आगम के सूत्रों को, गाथाओं को देखें, पढ़ें, सोचें, जिज्ञासापूर्वक प्रतीक्षा, अनुप्रेक्षा करे, तो आगम स्वयं हमें अर्थ देंगे । आगम कामधेनु है, वह हमें दूध न दे तबतक हम उनकी सेवा करे, भक्तिपूर्वक प्रतीक्षा करते रहे, हमारी यह प्रतीक्षा धीरे धीरे जिज्ञासा बन जाय और वह हमें समाधान तक ले जाये । शास्त्र माता तुल्य है । जैसे माँ के हृदयरस का संतान द्वारा शोषण नहीं होता, माँ स्वयं वात्सल्य से देती है, वैसे शास्त्र के अर्थ हम करने जाय तो बहुत सीमित होगा परंतु शास्त्र में तो अनेको रहस्य भरे पडे हैं, उन रहस्यों को हम शास्त्र की भक्ति से, विनय से, जिज्ञासा से पाये तो ये शास्त्र जीवंत बनकर भगवत् दशा की हमें अनुभूति करायेंगे ।
प्रस्तुत आगम रायप्पसेणीय' सूत्र में राजा प्रदेशी की आत्मखोज का बयान है । यद्यपि उनकी आसनस्थ भूमिका राजा की होते हुए भी आत्मा के संबंध में जानने की जिज्ञासा प्रशंसनीय है, लेकिन उनमें
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