Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ औपपातिकसून चम्पा नगरी 1 तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नपरी होत्या-रिथिमिथसमिद्धा, पमुइयजणजाणवया, आइण्णजणमणूसा, हलसयसहस्ससंकिट्ठ-विकिट्ठ-लट्ठ-पण्णत्तसेउसीमा, कुक्कुडसंडेयगामपउरा, उच्छजवसालिफलिया, गो-महिस-गवेलगप्पभूया, आयारवंत-चेइयजवइविविहसणिविट्ठबहुला, उक्कोडियगायगंठिभेयग-भड़-तक्कर-खंडरषखरहिया, खेमा, णिरुवद्दवा, सुभिक्खा, वीसत्थसुहावासा, अणेगकोडिकूड बियाण्णणिन्वयसहा, णड-जग-जल्ल-मल्ल-मृद्रिय-वेलंबग-कहग-पग-लासग-प्राइक्खग-मंखलख-तूणइल्ल-तुबवीणिय-अणेगतालायराणुचरिया, आरामुज्जाण-अगड-तलाग-दीहिय-वप्पिणगुणोवबेया, नंदणवणसन्निभप्पगासा, उग्विद्धविउलगंभीरखायफलिहा, चक्क-गय-भुसुदि-ओरोह-सग्घिजमलकवाड-घणदुप्पवेसा, धणुकुडिलवंकपागारपरिविखत्ता, कधिसीसगवट्टरइयसंठियविरायमाणा, अट्टालय-चरिय-वार-गोपुर-तोरण-समुण्णयसुविभत्तरायमग्गा, छयायरियरयदढफलिहइंदकीला, विवणिवणिछित्तसिप्पियाइण्णणिव्यसुहा, सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-पणियावण-विविहवत्थुपरिमंडिया, सुरम्मा, नरबइपविइण्णमहिवइपहा, अणेगवरतुरग-मत्तकुजर-रहपहकर-सीय-संदमाणीआइण्णजाण-जुग्गा, विमउलणवणलिणिसोभियजला, पंडुरवरभवणसण्णिमहिया, उत्ताणणयणपेच्छणिज्जा, पासादीया, दरिसणिज्जा, अभिरुवा पडिरूया। १---उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे पारे के अन्त में ; उस समय ---जब आर्य सुधर्मा विद्यमान थे, चम्पा नामक नगरी थी। वह वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध थी। वहां के नागरिक और जनपद के अन्य भागों से आये व्यक्ति वहां आमोद-प्रमोद के प्रचुर साधन होने से प्रमुदित रहते थे / लोगों की वहाँ घनी आबादी थी। सैंकड़ों, हजारों हलों से जुती उसकी समीपवर्ती भूमि सहजतया सुन्दर मार्ग-सीमा सी लगती थी। वहाँ मुर्गों और युवा सांडों के बहुत से समूह थे। उसके आसपास की भूमि ईख, जौ और धान के पौधों से लहलहाती थी / वहाँ गायों, भैसों, भेड़ों की प्रचुरता थी। वहाँ सुन्दर शिल्पकलायुक्त चैत्य और युवतियों के विविध सनिवेशों-पण्य तरुणियों के पाड़ों-टोलों का बाहुल्य था / वह रिश्वतखोरों, गिरहकटों, बटमारों, चारों, खण्डरक्षकों-चुगी वसूल करने वालों से रहित, सुख-शान्तिमय एवं उपद्रवशून्य थी। वहाँ भिक्षुकों को भिक्षा सुखपूर्वक प्राप्त होती थी, इसलिए वहाँ निवास करने में सब सुख मानते थे, प्राश्वस्त थे। अनेक श्रेणी के कोम्बिक-पारिवारिक लोगों को घनी बस्ती होते हुए भी वह शान्तिमय थी। नट-नाटक दिखाने वाले, नर्तकनाचने वाले, जल्ल----कलाबाज--रस्सी आदि पर चढ़कर कला दिखाने वाले, मल्ल-पहलवान, मौष्टिक-मुक्केबाज, विडम्बक-विदूषक--मसखरे, कथक-कथा कहने वाले, प्लवक-उछलने या नदी प्रादि में तैरने का प्रदर्शन करने वाले, लासक-वीररस की गाथाएं या रास गाने वाले, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org