Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 212
________________ समुद्घात का स्वरूप [169 प्रदेशों को विस्तीर्ण कर दण्ड के आकार में करते हैं अर्थात पहले समय में उनके प्रात्मप्रदेश ऊर्ध्वलोक तथा अधोलोक के अन्त तक प्रसृत होकर दण्डाकार हो जाते हैं / दूसरे समय में वे (केवली) आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण कर कपाटाकार करते हैं—आत्मप्रदेश पूर्व तथा पश्चिम दिशा में फैलकर कपाट का आकार धारण कर लेते हैं / तीसरे समय में केवलो उन्हें विस्तीर्ण कर मन्थानाकार करते हैं—प्रात्मप्रदेश दक्षिण तथा उत्तर दिशा में फैलकर मथानी का आकार ले लेते हैं / चौथे समय केवली लोकशिखर सहित इनके अन्तराल की पूर्ति हेतु प्रात्मप्रदेशों को विस्तीर्ण करते हैं। पांचवें समय में अन्तराल स्थित प्रात्मप्रदेशों को प्रतिसंहत करते हैं वापस संकुचित करते हैं। छठे समय में मन्थानी के आकार में अवस्थित प्रात्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं / सातवें समय में कपाट के आकार में स्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं / आठवें समय में दण्ड के आकार में स्थित प्रात्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं / तत्पश्चात् वे (पूर्ववत्) शरीरस्थ हो जाते हैं। १४५-से णं भंते ! तथा समुग्घायं गए कि मणजोगं जुजइ ? वयजोगं जुजह ? कायजोगं जुजइ ? गोयमा ! णो मणजोगं जुजइ, णो वयजोगं जुजइ, कायजोगं जुजइ / १४५---भगवन् ! समुद्धातगत-समुद्घात में प्रवर्तमान केवली क्या मनोयोग का प्रयोग करते हैं ? क्या वचन-योग का प्रयोग करते हैं ? क्या काय-योग का प्रयोग करते हैं ? गौतम ! वे मनोयोग का प्रयोग नहीं करते / वचन-योग का प्रयोग नहीं करते / वे काययोग का प्रयोग करते हैं। अर्थात वे मानसिक तथा वाचिक कोई क्रिया न कर केवल कायिक क्रिया करते हैं। १४६-कायजोगं जुजमाणे किं प्रोरालियसरीरकायजोगं जुजइ ? पोरालियमिस्ससरीरकायजोगं जुजइ ? वेउब्धियसरीरकायजोगं जुजइ ? वेउन्धियमिस्ससरीरकायजोगं जुजइ ? प्राहारगसरीरकायजोगं जुजइ ? पाहारगमिस्तसरीरकायजोगं जुजइ ? कम्मसरीरकायजोगं जुजइ ? ____ गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगं जुजइ, ओरालियमिस्ससरीरकायजोगं पि जुजइ, णो वेउब्वियसरीरकायजोगं जुजइ, णो वेउम्बियमिस्ससरीरकायजोगं जुजइ, णो पाहारगसरीरकायजोगं जुजइ, णो पाहारगमिस्ससरीरकायजोगं जुजइ, कम्मसरीर-कायजोगं पि जुजइ, पढमट्ठमेसु समएसु ओरालियसरीरकायजोगं जुजइ, बिइयछट्ठसत्तमेसु समएसु पोरालियमिस्ससरीरकायजोगं जुजइ, तइयचउत्थपंचमेहि कम्मसरीरकायजोगं जुजइ ? १४६.-भगवन् ! काय-योग को प्रयुक्त करते हुए क्या वे प्रौदारिक-शरीर-काय-योग का प्रयोग करते हैं-औदारिक शरीर से क्रिया करते हैं? क्या औदारिक-मिश्र-औदारिक और कार्मण-दोनों शरीरों से क्रिया करते हैं ? क्या वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या वैक्रियमिश्र-कार्मण-मिश्रित या औदारिक-मिश्रित वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या आहारक शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या आहारक-मिथ-ग्रौदारिक-मिश्रित आहारक शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या कार्मण शरीर से क्रिया करते हैं? अर्थात् सात प्रकार के काययोग में से किस काययोग का प्रयोग करते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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