Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 213
________________ 170 [ओपपातिकसून गौतम ! वे औदारिक-शरीर-काय-योग का प्रयोग करते हैं, प्रौदारिक-मिश्र शरीर से भी क्रिया करते हैं। वे वैक्रिय शरीर से क्रिया नहीं करते। वैक्रिय-मिश्र शरीर से क्रिया नहीं करते। आहारक शरीर से क्रिया नहीं करते / आहारक-मिश्र शरीर से भी क्रिया नहीं करते / अर्थात् इन कायिक योगों का वे प्रयोग नहीं करते / पर औदारिक तथा औदारिक-मिश्र के साथ-साथ कार्मणशरीर-काय-योग का भी प्रयोग करते हैं। पहले और आठवें समय में वे औदारिक शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैं / दूसरे, छठे और सातवें समय में वे औदारिक मिश्र शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैं। तीसरे, चौथे और पाँच समय में वे कार्मण शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैं / समुद्घात के पश्चात् योग-प्रवृत्ति १४७–से णं भंते ! तहा समुग्घायगए सिसइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिणिध्वाइ, सव्वदुक्खाणमंतं करे? जो इणठे समठे ? से गं तो पडिणियत्तइ, पउिणियत्तित्ता इहमागच्छइ, प्रागच्छित्ता तो पच्छा मणजोगं पि जुजइ, वयजोग पि जुजइ, कायजोगं पि जुजइ / १४७--भगवन् ! क्या समुद्घातगत—समुद्घात करने के समय कोई सिद्ध होते हैं ? बुद्ध होते हैं ? मुक्त होते हैं ? परिनिर्वत होते हैं परिनिर्वाण प्राप्त करते हैं ? सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम! ऐसा नहीं होता। वे उससे—समुद्घात से वापस लौटते हैं। लौटकर अपने ऐहिक-मनुष्य शरीर में आते हैं --अवस्थित होते हैं / तत्पश्चात् मनोयोग, वचनयोग तथा काययोग का भी प्रयोग करते हैं—मानसिक, वाचिक एवं कायिक क्रिया भी करते हैं। १४८-मणजोगं जुजमाणे कि सच्चमणजोगं जुजइ ? मोसमणजोगं जुजइ ? सच्चामोसमणजोगं जुजइ ? असच्चामोसमणजोगं जुजा? गोयमा! सच्चमणजोगं जुजइ, णो मोसमणजोगं जुजइ, णो सच्चामोसमणजोगं जुजा, असच्चामोसमणजोगं पि जुजइ / १४८.-भगवन् ! मनोयोग का उपयोग करते हुए क्या सत्य मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या मृषा-असत्य मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या सत्य-मृषा-सत्य-असत्य मिश्रित (जिसका कुछ अंश सत्य हो, कुछ असत्य हो ऐसे) मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या अ-सत्य-अ-मृषा-न सत्य, न असत्य-व्यवहार-मनोयोग का उपयोग करते हैं ? गौतम ! वे सत्य मनोयोग का उपयोग करते हैं। असत्य मनोयोग का उपयोग नहीं करते। सत्य-असत्य-मिश्रित मनोयोग का उपयोग नहीं करते / किन्तु अ-सत्य-अ-मृषा-मनोयोग-व्यवहार मनोयोग का वे उपयोग करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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