Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 190
________________ अम्मर के उत्तरवता मव] [147 किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उवज्जिहिति / तत्थ णं प्रत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोबमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं अम्मडस्स वि देवस्स दस सागरोवमाइं ठिई / १००--भगवन् ! अम्बड परिव्राजक मृत्यु-काल आने पर देह-त्याग कर कहाँ जायेगा? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! अम्बड परिव्राजक उच्चावच उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट-विशेष-सामान्य शीलवत, गुणव्रत, विरमण-विरति, प्रत्याख्यान-त्याग एवं पोषधोपवास द्वारा प्रात्मभावित होता हुआ-- आत्मोन्मुख रहता हा बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक-पर्याय-गाह-धर्म या श्रावक-धर्म का पालन करेगा। वैसा कर एक मास को संलेखना और साठ भोजन-एक मास का अनशन सम्पन्न कर, पालोचना, प्रतिक्रमण कर, मृत्यु-काल पाने पर वह समाधिपूर्वक देह-त्याग करेगा। देह-त्याग कर वह ब्रह्मलोक कल्प में देवरूप में उत्पन्न होगा। वहाँ अनेक देवों की प्रायु-स्थिति दश सागरोपम-प्रमाण बतलाई गई / अम्बड देव का भी आयुष्य दश सागरोपम-प्रमाण होगा। १०१-सेणं भंते ! अम्मडे देवे तानो देवलोगानो पाउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति, कहि उववज्जिहिति ? १०१-भगवन् ! अम्बड देव अपना अायु-क्षय, भव-क्षय, स्थिति-क्षय होने पर उस देवलोक से च्यवन कर कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा? १०२.---गोयमा ! महाविदेहे वासे जाई कुलाई भवंति--अड्ढाई, दित्ताई, वित्ताई वित्थिण्णविउल भवण-सयणासण-जाण-वाहणाई, बहुधण-जायरूव-रययाई, श्राोगपोगसंपउत्ताई विच्छड्डियपउरभत्तपाणाई, बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाई, बहुजणस्स अपरिभूयाइं, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति / १०२-गोतम ! महाविदेह क्षेत्र में ऐसे जो कुल हैं यथा --धनाढय, दीप्त-दोप्तिमान्, प्रभावशाली या दृप्त-स्वाभिमानी, सम्पन्न, भवन, शयन-प्रोढ़ने-बिछाने के वस्त्र, प्रासन-बैठने के उपकरण, यान-माल-असबाब ढोने की गाड़ियाँ, वाहन-सवारियाँ ग्रादि विपुल साधन-सामग्री तथा सोना, चाँदी, सिक्के आदि प्रचुर धन के स्वामी होते हैं। वे प्रायोग-प्रयोग-संप्रवृत्त-व्यावसायिक दृष्टि से धन के सम्यक् विनियोग और प्रयोग में निरत-नीतिपूर्वक द्रव्य के उपार्जन में संलग्न होते हैं / उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खाने-पीने के बहुत पदार्थ बचते हैं। उनके घरों में बहुत से नौकर, नौकरानियाँ, गायें, भंसे, बैल, पाड़े, भेड़-बकरियाँ आदि होते हैं। वे लोगों द्वारा अपरिभूत-प्रतिरस्कृत होते हैं- इतने रोबीले होते हैं कि कोई उनका परिभव-तिरस्कार या अपमान करने का साहस नहीं कर पाता / अम्बड (देव) ऐसे कुलों में से किसी एक में पुरुषरूप में उत्पन्न होगा। १०३-तए णं तस्स दारगस्स गम्भत्थस्स चेव समाणस्स अम्मापिईणं धम्मे दहा पइण्णा भविस्सइ। १०३–पम्बड शिशु के रूप में जब गर्भ में आयेगा, (उसके पुण्य-प्रभाव से) माता-पिता की धर्म में आस्था दृढ़ होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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