Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 128
________________ शेष भवनवासी देवों का आगमन] [85 "चडामणि-फणि-बज्जे गरुडे घड-अस्स-वद्धमाणे य / मयरे सीहे हत्थी असुराईणं मुणसु चिधे // " (चूडामणि : फणी वज्र गरुड: घटोऽश्वो बर्द्धमानश्च / मकरः सिंहो हस्ती असुरादीनां मुण चिह्नानि / / ) पन्नवणा में भी यह प्रसंग चचित हुआ है। तदनुसार असुरकुमार का चिह्न चूडामणि, नागकुमार का नाग-फण, सुवर्णकुमार का गरुड, विद्युत्कुमार का वज्र, अग्निकुमार का पूर्ण कलश, द्वीपकुमार का सिंह, उदधिकुमार का अश्व, दिशाकुमार का हाथी, पवनकुमार का मगर तथा स्तनितकुमार का वर्द्धमानक है।' शेष भवनवासी देवों का आगमन ३४--तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरिंदवज्जिया भवणवासी देवा अंतियं पाउभविस्था-णागपइणो, सूवण्णा, विज्ज, अग्गीय दीव-उदही, दिसाकूमारा य पवणथणिया य भवणवासी, जागफडा-गरुल-वर-पुण्णकलस-सोह-हय-गय-मगर-मउड-बद्धमाण-णिज्जुत चिधगया, सुरुवा, महिड्ढिया जाव (महज्जुइया, महब्बला, महायसा, महासोक्खा, महाणुभागा, हारविराइयवच्छा, कडगतुडियर्थभियभुया, अंगय-कुण्डलमढगंडतला, कण्णपीढधारी, विचित्तहत्थाभरणा, विचित्तमालामउलिमउडा, कल्लाणग-पवर-वत्थपरिहिया, कल्लाणग-पवर-मल्लाणुलेवणा, भासुरबोंदी, पलंबधणमालधरा, दिवेणं वण्णणं, दिवेणं गंधेणं, दिवेणं रूवेणं, एवं-फासेणं, संघाएणं संठाणेणं, दिव्बाए इड्ढीए, जुईए, पभाए, छायाए, अच्चीए, दिव्वेणं तेएणं, दिवाए लेसाए दस दिसो उज्जोवेमाणा, पभासेमाणा समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं आगम्मागम्ग रत्ता, समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणफ्याहिणं करेंति, करेत्ता वंदति, णमंसंति, [वंदित्ता] णमंसित्ता [साई साइं णामगोयाई साति] पच्चासण्णे गाइदूरे सूस्सूसमाणा, मंसमाणा, अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा) पज्जुवासंति। ३४-उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के पास असुरेन्द्रवजित--असुरकुमारों को छोड़कर नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार जाति के भवनवासी--पाताललोक-स्थित अपने आवासों में निवास करने वाले देव प्रकट हुए। उनके मुकुट क्रमश: नागफण, गरुड, वज, पूर्ण कलश, सिंह, अश्व, हाथी, मगर तथा वर्द्धमानक--शराव-सिकोरा अथवा स्कन्धारोपित-कन्धे पर चढ़ाया हुआ पुरुष थे। (वे सुरूप-सुन्दर रूप युक्त, परम ऋद्धिशाली, परम द्युतिमान्, अत्यन्त बलशाली, परम यशस्वी, परम सुखी तथा अत्यन्त सौभाग्यशाली थे। उनके वक्षःस्थलों पर हार सुशोभित हो रहे थे। वे अपनी भुजामों पर कंकण तथा भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखने वाली पट्टियाँ एवं अंगद-भुजबन्ध धारण किये हए थे। उनके मृष्ट--केसर, कस्तूरी आदि से मण्डित-चित्रित कपोलों पर कुडल व अन्य कर्णभूषण शोभित थे। वे विचित्र-विशिष्ट या अनेकविध हस्ताभरण-हाथों के आभूषण धारण किये हुए थे। उनके मस्तकों पर तरह तरह की मालाओं से युक्त मुकुट थे। वे कल्याणकृत्--मांगलिक, अनुपहत या अखण्डित, प्रवर--उत्तम पोशाक पहने हुए थे। वे मंगलमय, उत्तम मालाओं एवं 1. पनवणा पद 2,2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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