Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 14] [ोपपातिकसूत्र चम्पा नगरी की भीतर और बाहर से सफाई की जा चुकी है, वह सुगंध से महक रही है। यह सब देखकर वह मन में हर्षित, परितुष्ट, आनन्दित एवं प्रसन्न हुआ। भंभसार का पुत्र राजा कूणि क जहाँ था, वह वहाँ प्राया / आकर हाथ जोड़े, (उन्हें सिर के चारों ओर घुमाया, अंजलि को मस्तक से लगाया) राजा से निवेदन किया देवानुप्रिय ! आभिषेक्य हस्तिरत्न तैयार है / घोड़े, हाथी, रथ, उत्तम योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना सन्नद्ध है / सुभद्रा आदि रानियों के लिए, प्रत्येक के लिए अलग-अलग जुते हुए यात्राभिमुख-गमनोद्यत यान बाहरी सभा-भवन के निकट उपस्थापित-हाजिर है। चम्पा नगरी की भीतर और बाहर से सफाई करवा दी गई है, पानी का छिड़काव करवा दिया गया है, वह सुगंध से महक रही है / देवानुप्रिय ! श्रमण भगवान् महावीर के अभिवन्दन हेतु आप पधारें। ४८-तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट सोच्चा, णिसम्म हट्ठतुट्ठ जाव' हियए, जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता प्रणेगवायामजोगवग्गण-वामद्दण-मल्लजुलकरहिं संते, परिस्संते, सयपाग-सहस्सपागेहि सुगंधतेल्लमाइएहि पोणणिज्जेहि दप्पणिज्जेहि मयणिज्जेहि विहणिज्जेहि सबिदियगायपलायणिज्जेहि अभिगेहिं अभिगिए समाणे, तेल्लचम्मसि पडिपुण्णदाणियायसुउमालकोमलतलेहि पुरिसेहिं छपहि, दखेहि पत्तठेहि कुसलेहि मेहावीहि निउणसिप्पोवगएहि अभिगणपरिमहणुव्वलणकरणगुणणिमाहि, प्रद्विसुहाए, मंससुहाए, तयासुहाए, रोमसुहाए चउबिहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे, अवगयखेय. परिस्समे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छा, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाउलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमयले रमणिज्जे ण्हाणमंडसि, णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि हाणपीठंसि सुहणिसणे सुद्धोदएहि, गंधोदहि, पुष्फोदएहि, सुहोदएहि पुणो कल्लाणगपबरमज्जणविहीए मज्जिए, तत्थ कोउयसहि बहुविहेहि कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलहियंगे, सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते, अहयसुमहग्घदूसरयणसुसंवुए, सुइमालावणगविलेवणे य पाविद्धमणिसुवण्ण, कप्पियहारद्धहारतिसरयपालंबपलंबमाणकडिसुत्तसुणयसोभे, पिणद्धगेविज्जअंगुलिज्जगललियंगयललियफयाभरणे, वरकउगतुडियर्थभियभुए, अहियरुवसस्सिरीए, मुद्दिपिगलंगुलीए कुडलउज्जोबियाणणे मउदित्तसिरए, हारोत्थयसुकयरइयवच्छे, पालंबपलंबमाणपडसुकयउत्तरिज्जे, णाणामणिकणगरयविमलमहरिहणिउणोवियमिसिमिसंतविरइयसुसिलिट्टविसिट्ठलट्ठप्राविद्धवीरवलए कि बहुणा, कप्परक्खए चेव प्रलंकियविभूसिए परवई सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, चउचामरवालवीइयंगे, मंगलजयसहकयालोए, मज्जणघराम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता प्रणेगगणनायग-दंडनायगराईसर-तलवरमाइंबिय-कोडुबिय इभ-से द्वि-सेणावइ-सत्यवाह-दूय-संधिवालद्धि संपरिबुडे धवलमहामेहणिगए इध गहगणदिप्यंत-रिक्ख-तारागणाण मज्मे ससिब्य पिनसणे गरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव प्राभिसेक्के हस्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अंजणगिरिकडसण्णिभं गयवई गरवई दुरुढे / ४५---भंभसार के पुत्र राजा कणिक ने सेनानायक से यह सुना। वह प्रसन्न एवं परितुष्ट हुआ / जहाँ व्यायामशाला थी, वहाँ पाया। आकर व्यायामशाला में प्रवेश किया। प्रवेश कर अनेक 1. देखें सूत्र-संख्या 18 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org