Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ दर्शन वन्दन की तैयारी] [97 ४५--फिर सेनानायक ने नगरगुप्तिक-नगर की स्वच्छता, सद्व्यवस्था आदि के नियामक, नगररक्षक या कोतवाल को बुलाया। बुलाकर उससे कहा-देवानुप्रिय ! चम्पा नगरी के बाहर और भीतर, उसके संघाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग-इन सबकी सफाई कराओ। वहाँ पानी का छिड़काव करायो, गोबर आदि का लेप करायो। (नगरी के रथ्यान्तर-गलियों के मध्य-भागों तथा पापणवीथियों-बाजार के रास्तों की भी सफाई कराओ, पानी का छिड़काव करायो, उन्हें स्वच्छ व सुहावने करायो। मंचातिमंच-सीढ़ियों से समायुक्त प्रेक्षा-गृहों की रचना करायो। तरह-तरह के रंगों की, ऊँची, सिंह, चक्र प्रादि चिह्नों से युक्त ध्वजाएँ, पताकाएँ तथा अतिपताकाएँ, जिनके परिपार्श्व अनेकानेक छोटी पताकाओं-झंडियों से सजे हों, ऐसी बड़ी पताकाएँ लगवायो / नगरो की दीवारों को लिपवाओ, पुतवायो...................... ..) नगरी के वातावरण को उत्कृष्ट सौरभमय करवा दो / यह सब करवाकर मुझे सूचित करो कि प्राज्ञा का अनुपालन हो गया है। ४६--तए णं से पयरगुत्तिए बालवाउयस्स एयमझें माणाए विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता चंपं गरि सम्भितरबाहिरियं प्रासित जाव' कारवेत्ता, जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चाप्पिणइ / ४६–नगरपाल ने सेनानायक का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया। स्वीकार कर चम्पा नगरी की बाहर से, भीतर से सफाई, पानी का छिड़काव प्रादि करवाकर, वह जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया। आकर आज्ञापालन किये जा चुकने की सूचना दी। ४७–तए णं से बलवाउए कोणियस्स रणो भंभसारपुत्तस्स प्राभिसेक्कं हस्थिरयणं पडिकप्पियं पासइ, हयगय जाव (रहपवरजोहकलियं च चाउरंगिणि सेणं) सण्णाहियं पासइ, सुभद्दापमुहाणं देवीणं पडिजाणाई उवटुवियाई पासइ, चंपं गरि भितरं जाव' गंधट्टिभूयं कयं पासइ, पासित्ता हद्वचित्तमाणदिए, पीअमणे जाव' हियए जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव (-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु) एवं वयासीकप्पिए णं देवाणुप्पियाणं प्राभिसेक्के हत्थिरयण, हयगयरहपवरजोहकलिया य चाउरंगिणी सेणा सण्णाहिया, सुभद्दापमुहाणं य देवोणं बाहिरियाए उवट्टाणसालाए पाडिएक्कपाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाइं उबट्टावियाई, चंपा गयरी सभितरबाहिरिया प्रासित्त जाब गंधवट्टिभूया कया, तं णिज्जंतु णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवंदया। ४७--तदनन्तर सेनानायक ने भंभसार के पुत्र राजा कृणिक के प्रधान हाथी को सजा हुआ देखा / (घोड़े, हाथी, रथ, उत्तम योद्धानों से परिगठित) चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध-सुसज्जित देखा / सुभद्रा आदि रानियों के लिए उपस्थापित-तैयार कर लाये हुए यान देखे / यह भी देखा, 1. देखें सूत्र-संख्या 40 2. देखें सूत्र-संख्या 40 तथा सूत्र-संख्या 45 3. देखें सूत्र-संख्या 18 4. देखें यही, सूत्र-मख्या 40 तथा सूत्र-संख्या 45 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org