Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ ऐकावली] [29 ना. तेला, चार अन्तकृद्दशांग सूत्र के अनुसार कनकावली तप का स्वरूप इस प्रकार है--- साधक सबसे पहले एक (दिन का) उपवास, तत्पश्चात् क्रमशः दो दिन का उपवास-एक बेला. तीन दिन का उपवास-एक तेला, फिर एक साथ आठ तेले, फिर उपवास, दिन, पांच दिन, छह दिन, सात दिन, आठ दिन, नौ दिन, दश दिन, ग्यारह दिन, बारह दिन, तेरह दिन, चवदह दिन, पन्द्रह दिन, तथा सोलह दिन का उपवास करे / तदनन्तर एक साथ चोंतीस तेले करे। फिर सोलह दिन, पन्द्रह दिन, चवदह दिन, तेरह दिन, बारह दिन, ग्यारह दिन, दश दिन, नौ दिन, पाठ दिन, सात दिन, छह दिन, पांच दिन, चार दिन का उपवास, तेला, बेला तथा उपवास करे। चोंतीस तेलों से पहले किये गये तपश्चरण के समक्ष तपःक्रम यह है। तत्पश्चात् आठ तेले करे / ये भी इनसे पूर्व किये गये आठ तेलों के समकक्ष हो जाते हैं। उसके बाद एक तेला, एक बेला और एक उपवास करे। पाठ-पाठ तेलों का युगल हार के दो फूलों जैसा तथा मध्यवर्ती चोंतीस तेलों का क्रम बीच के पान जैसा है। इस प्रकार कनकावली तप के एक क्रम या परिपाटी में 1+2+3+3+3+3+3+3+3+3+3+1+2+3+4+5+6+7+8.9 +10+11+12+13+14+1 +16+3+3+3+3+3+3+3+3+3+3+3+-3 +3+3+3+3+3 +3+3 +3+3+3+3+3+3+3+3+3+3+3+3+3+3 +3+1 +1 +14+13-12+11+10+9+ + +6+5+4+3+2+1+3+3 +3+3+3+3+3+3+3+2+1-434 दिन अनशन या उपवास तथा 88 दिन पारणायों कुल 522 दिन-एक वर्ष पांच महीने तथा बारह दिन लगते हैं। पूरे तप में चार परिपाटियाँ सम्पन्न की जाती हैं। पहलो परिपाटी के अन्तर्गत पारणे में विगय-दूध, दही, घृत प्रादि लिये जा सकते हैं। दूसरी परिपाटी के अन्तर्गत पारणों में दूध, दही, घत आदि विगय नहीं लिये जा सकते / तीसरी परिपाटी के अन्तर्गत, जिनका लेप न लगे, वैसे निलेप पदार्थ --स्निग्धता आदि से सर्वथा वजित खाद्य वस्तुएँ पारणों में ली जा सकती हैं। चौथी परिपाटी के अन्तर्गत पारणे में आयंबिल-किसी एक प्रकार का अन्न- भूजा हुआ या रोटी आदि के रूप में पकाया हुआ पानी में भिगोकर लिया जाता है। कनकावली तप की चारों परिपाटियों में 522+522+522+522-2088 दिनपांच वर्ष नौ महीने व अठारह दिन लगते हैं / एकावली मोतियों या दूसरे मनकों की लड़ एकावली कही जाती है। इसे प्रतीक रूप में मानकर एकावली तप की परिकल्पना है / वह इस प्रकार है साधक एकावली तप के अन्तर्गत क्रमशः उपवास, बेला, तेला, तदनन्तर पाठ उपवास, फिर उपवास, बेला, तेला, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ, दश, ग्यारह, बारह, तेरह, चवदह, पन्द्रह तथा सोलह दिन के उपवास करे। वैसा कर निरन्तर चोंतीस उपवास करे। फिर सोलह, पन्द्रह, चवदह, तेरह, बारह, ग्यारह, दश, नौ, आठ, सात, छह, पाँच, चार दिन के उपवास, तेला, बेला, उपवास, पाठ उपवास, तेला, बेला तथा उपवास कर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org