Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 22
________________ प्रयोग किया गया है। दिगम्बर परम्परा में एकवचनान्त 'पण्हवायरणं' 'प्रश्नव्याकरणम्' एकवचनान्त का ही प्रयोग किया गया है। स्थानांगसूत्र के दशम् स्थान में प्रश्नव्याकरण का नाम 'पण्हावागरणदसा' बतलाया है, जिसका संस्कृत रूप टीकाकार अभयदेव सूरि ने 'प्रश्नव्याकरणदशा किया है, किन्तु यह नाम अधिक प्रचलित नहीं हो पाया। प्रश्नव्याकरण यह समासयुक्त पद है / इसका अर्थ होता है-प्रश्नों का व्याकरण अर्थात् निर्वचन, उत्तर एवं निर्णय / इसमें किन प्रश्नों का व्याकरण किया गया था, इसका परिचय अचेलक परंपरा के धवला आदि ग्रन्थों एवं सचेलक परंपरा के स्थानांग, समवायांग और नन्दी सूत्र में मिलता है। स्थानांग में प्रश्नव्याकरण के दस अध्ययनों का उल्लेख है-उपमा, संख्या, ऋषिभाषित, प्राचार्यभाषित, महावीरभाषित, क्षौमकप्रश्न, कोमलप्रश्न, अदागप्रश्न, अंगुष्ठप्रश्न और बाहुप्रश्न / समवायांग में बताया गया है कि प्रश्नव्याकरण में 108 प्रश्न, 108 अप्रश्न और 108 प्रश्नाप्रश्न हैं, जो मन्त्रविद्या एवं अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न, दर्पणप्रश्न आदि विद्यानों से सम्बन्धित हैं और इसके 45 अध्ययन हैं। नन्दीसूत्र में भी यही बताया गया है कि प्रश्नव्याकरण में 108 प्रश्न, 108 अप्रश्न और 108 प्रश्नाप्रश्न हैं, अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न, दर्पणप्रश्न आदि विचित्र विद्यातिशयों का वर्णन है, नागकुमारों व सुपर्णकुमारों की संगति के दिव्य संबाद हैं, 45 अध्ययन हैं। ___ अचेलकपरम्परा के धवला आदि ग्रन्थों में प्रश्नव्याकरण का विषय बताते हुए कहा है-प्रश्नव्याकरण में आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी, इन चार प्रकार की कथाओं का वर्णन है। आक्षेपणी में छह द्रव्यों और नौ तत्त्वों का वर्णन है। विक्षेपणी में परमत की एकान्त दृष्टियों का पहले प्रतिपादन कर अनन्तर स्वमत अर्थात् जिनमत की स्थापना की जाती है / संवेदनी कथा पुण्यफल की कथा है, जिसमें तीर्थंकर, गणधर, ऋषि, चक्रवर्ती, बलदेव वासुदेव, देव एवं विद्याधरों की ऋद्धि का वर्णन होता है। निदनी में पापफल निरूपण होता है अतः उसमें नरक, तिर्यच, कूमानुषयोनियों का वर्णन है और अंगप्रश्नों के अनुसार हृतः नष्ट, मुष्टि, चिन्तन, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या का भी निरूपण है। उपयुक्त दोनों परम्पराओं में दिये गये प्रश्नव्याकरण के विषयसंकेत से ज्ञात होता है कि प्रश्न शब्द मन्त्रविद्या एवं निमित्तशास्त्र आदि के विषय से सम्बन्ध रखता है / और चमत्कारी प्रश्नों का व्याकरण जिस सूत्र में वर्णित है, वह प्रश्नव्याकरण है / लेकिन वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण में ऐसी कोई चर्चा नहीं है। अतः यहाँ प्रश्नव्याकरण का सामान्य अर्थ जिज्ञासा और उसका समाधान किया जाए तो ही उपयुक्त होगा। अहिंसा-हिंसा सत्य-असत्य आदि धर्माधर्म रूप विषयों की चर्चा जिस सूत्र में की गई है वह प्रश्नव्याकरण है। इसी दृष्टि से वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण का नाम सार्थक हो सकता है। एक प्रश्न और उसका उत्तर सचेलक और अचेलक दोनों ही परम्परानों में प्राचीन प्रश्नव्याकरण सूत्र का जो विषय बताया है, और वर्तमान में जो उपलब्ध है, उसके लिये एक प्रश्न उभरता है कि इस प्रकार का परिवर्तन किसने किया और क्यों किया? इसके सम्बन्ध में वृत्तिकार अभयदेव सूरि लिखते हैं. इस समय का कोई अनधिकारी मनुष्य चमत्कारी विद्याओं का दुरुपयोग न करे, इस दृष्टि से दे विद्यायें इस सूत्र में से निकाल दी गई और केवल प्रास्रव और संवर का समावेश कर दिया गया। दूसरे टीकाकार आचार्य ज्ञानविमल भी ऐसा ही उल्लेख करते हैं। परन्तु इन समाधानों से सही उत्तर नहीं मिल पाता है। हां यह कह सकते हैं कि वर्तमान प्रश्नव्याकरण भगवान् द्वारा प्रति [19] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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