Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 16
________________ प्राथमिक वियाहपत्तिसुत्तं ( भगवइसुत्तं ) विषय-सूची छठा शतक छठे शतकगत उद्देशकों का संक्षिप्त परिचय छठे शतक की संग्रहणी गाथा ३-१०५ ३ प्रथम उद्देशक - वेदना ( सूत्र १-१४ ) ५- १२ महावेदना एवं महानिर्जरा युक्त जीवों का निर्णय विभिन्न दृष्टान्तों द्वारा ५, महावेदना और महानिर्जरा की व्याख्या ८, क्या नारक महावेदना और महानिर्जरा वाले नहीं होते ? ८, दुर्विशोध्य कर्म के चार विशेषणों की व्याख्या ९, चौवीस दण्डकों के करण की अपेक्षा साता - असाता - वेदना की प्ररूपणा ९, चार करणों का स्वरूप ११, जीवों में वेदना और निर्जरा से सम्बन्धित चतुर्भंगी का निरूपण ११, प्रथम उद्देशक की संग्रहणी गाथा १२ । द्वितीय उद्देशक - आहार (सूत्र १ ) १३-१४ जीवों के आहार के सम्बंध में अतिदेशपूर्वक निरूपण १३, प्रज्ञापना में वर्णित आहार सम्बन्धी वर्णन की संक्षिप्त झांकी १३. । तृतीय उद्देशक - महाश्रव (सूत्र १ - २९ ) १५-१६ तृतीय उद्देशक की संग्रहणी गाथायें १५, प्रथम द्वार - महाकर्मा और अल्पकर्मा जीव के पुद्गल-बंध भेदादि का दृष्टान्तद्वयपूर्वक निरूपण १५, महाकर्मादि की व्याख्या १८, द्वितीय द्वार - वस्त्र में पुद्गलोपचयवत् समस्त जीवों के कर्मपुद्गलोपचय प्रयोग से या स्वभाव से ? एक प्रश्नोत्तर १९, तृतीय द्वार - वस्त्र के पुदग्लोपचयवात् जीवों के कर्मोपचयकी सादि - सान्तता आदि का विचार २०, जीवों का कर्मोपचय सादिसान्त, अनादि-सान्त एवं अनादि - अनन्त क्यों और कैसे ? २१, तृतीय द्वार - वस्त्र एवं जीवों की सादि - सान्तता आदि चतुर्भंगी प्ररूपणा २३, नरकादिगति की सादि - सान्तता २३, सिद्ध जीवों की सादि - अनन्तता २३, भवसिद्धिक जीवों की अनादि - सान्तता २३, चतुर्थ द्वार - अष्ट कर्यों की बन्धस्थिति आदि का निरूपण २४, स्थिति २५, कर्म की स्थिति : दो प्रकार की २५, आयुष्यकर्म के निषेककाल और अबाधाकाल में विशेषता २५, वेदनीयकर्म की स्थिति २५, पांचवें से उन्नीसवें तक पन्द्रह द्वारों में उक्त विभिन्न विशिष्ट जीवों की अपेक्षा से कर्मबन्ध-अबंध का निरूपण २५, अष्टविधकर्मबन्धक - विषयक प्रश्न क्रमश: पन्द्रह द्वारों में ३२, पन्द्रह द्वारों में प्रतिपादित जीवों के कर्मबन्ध-अबंध विषयक समाधान का स्पष्टीकरण ३२, पन्द्रह द्वारों में उक्त जीवों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा ३५, वेदकों के अल्पबहुत्व का स्पष्टीकरण ३६, संयतद्वार में चरमद्वार तक का अल्पबहुत्व ३६ । [१३]

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