Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध विवेचन-बारहवां क्रियास्थान : लोभप्रत्ययिक-अधिकारी, लोभप्रक्रिया एवं दुष्परिणामप्रस्तुत सूत्र में लोभप्रत्ययिक क्रियास्थान के सन्दर्भ में शास्त्रकार पांच तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं
(१) लोभप्रत्यया क्रिया के अधिकारी-आरण्यक आदि ।
(२) वे विषयलोलुपतावश प्राणातिपात, मृषावाद आदि से सर्वथा विरत नहीं होते, कतिपय उदाहरणों सहित वर्णन ।
(३) लोभक्रिया का मूलाधार-स्त्रियों एवं शब्दादि कामभोगों में आसक्ति, लालसा, वासना एवं अन्वेषणा।
(४) विषयभोगों की लोलुपता का दुष्फल-आसुरी किल्विषिक योनि में जन्म, तत्पश्चात् एलक-मूकता, जन्मान्धता, जन्ममूकता की प्राप्ति ।
(५) विषयलोभ की पूर्वोक्त प्रक्रिया के कारण पापकर्मबन्ध और तदनुसार लोभप्रत्ययिक क्रियास्थान नाम की सार्थकता।'
__णोबहसंजया-जो अधिकांशतः संयमी नहीं हैं, इसका तात्पर्य यह है कि वे तापस आदि प्रायः त्रसजीवों का दण्डसमारम्भ नहीं करते, किन्तु एकेन्द्रियोपजीवी रूप में तो वे प्रसिद्ध हैं, इसलिए स्थावर जीवों का दण्डसमारम्भ करते ही हैं।
णो बहपडिविरया-जो अधिकांशतः प्राणातिपात आदि पाश्रवों से विरत नहीं हैं। अर्थात जो प्राणातिपातविरमण आदि सभी व्रतों के धारक नहीं हैं किन्तु द्रव्यतः कतिपय व्रतधारक हैं, भावतः सम्यग्दर्शन-ज्ञान रूप कारणों के अभाव में जरा भी सम्यक्वत (चारित्र) के धारक नहीं हैं ।
भोगभोगाइं इसका भावार्थ यह है कि स्त्री सम्बन्धी भोग होने पर शब्दादि भोग अवश्यम्भावी होते हैं, इसलिए शब्दादि भोग भोग-भोग कहलाते हैं।
प्रासुरिएसु-जिन स्थानों में सूर्य नहीं है, वे आसुरिक स्थान हैं । तेरहवां क्रियास्थान : ऐर्यापथिक : अधिकारी, स्वरूप, प्रक्रिया एवं सेवन
७०७-प्रहावरे तेरसमे किरियाठाणे इरियावहिए ति पाहिज्जति, इह खलु अत्तत्ताए संवुडस्स अणगारस्स इरियासमियस्स भासासमियस्स एसणासमियस्स प्रायाणभंडमत्तणिक्खेवणासमियस्स उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्ठावणियासमियस्स मणसमियस्स वइस मियस्स कायसमियस्स मणगुत्तस्स वइगुत्तस्स कायगुत्तस्स गुत्तस्स गुत्तिदियस्स गुत्तबंभचारिस्स पाउत्तं गच्छमाणस्स आउत्तं चिट्ठमाणस्स पाउत्तं णिसीयमाणस्स पाउत्तं तुयट्टमाणस्स पाउत्तं भुजमाणस्स पाउत्तं भासमाणस्स पाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा णिक्खिवमाणस्स वा जाव चक्खुपम्हणिवातमवि अत्थि वेमाया सुहुमा किरिया इरियावहिया नामं कज्जति, सा पढमसमए बद्धा पुट्ठा,
सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति, पत्रांक ३१४-३१५ का सारांश २. सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति, पत्रांक ३१४
सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति, पत्रांक ३१५. ४. 'आसुरिएसु-....'जेसु सूरो नत्थिट्ठाणेसु'–सूत्रकृतांग चूणि (मू. पा. टि.) पृ. १६३