Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अनाचारभुत : पंचम अध्ययन : सूत्र ७८६ ]
[१६३ भिक्षा की प्राप्ति के सम्बन्ध में पूछे जाने पर भविष्यवाणी कर देने से यदि उक्त कथन के विपरीत हो गया तो साधु के प्रति अश्रद्धा बढ़ेगी, एकान्त निश्चयकारी भाषा बोलने से भाषासमिति एवं सत्यमहाव्रत में दोष लगेगा। दान प्राप्त न होने का कहने पर प्रश्नकार के मन में अन्तराय, निराशा, दुःख होना सम्भव है। कहने पर प्रश्नार्थी में अपार हर्षवश अधिकरणादि दोषों की सम्भावना है । अतः साधु को प्रश्नकर्ता साधु के समक्ष शान्ति-(मोक्ष) मार्ग में वृद्धि हो ऐसा ही कथन करना चाहिए।
एकान्तमार्ग का प्राश्रय अनाचार की कोटि में चला जाता है। जिनोपदिष्ट प्राचारपालन में प्रगति करे
७८६-इच्चेतेहि ठाणेहि, जिणदिट्ठोहि संजए । धारयंते उ अप्पाणं, प्रामोक्खाए परिव्वएज्जासि ॥३३॥
त्ति बेमि ॥ ॥ प्रणायारसुयं : पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ ७८६-इस प्रकार इस अध्ययन में जिन भगवान् द्वारा उपदिष्ट या उपलब्ध (दृष्ट) स्थानों (तथ्यों) के द्वारा अपने आपको संयम में स्थापित करता हुआ साधु मोक्ष प्राप्त होने तक (पंचाचार पालन में) प्रगति करे ।
-ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन-जिनोपदिष्ट प्राचारपालन में प्रगति करे–प्रस्तुत गाथा में अध्ययन का उपसंहार करते हुए शास्त्रकार इस अध्ययन में जिनोपदिष्ट अनाचरणीय मार्गों को छोड़कर आचरणीय पंचाचारपालन मार्गों में प्रगति करने का निर्देश करते हैं।
॥ अनाचारश्रुतः पंचम अध्ययन समाप्त ॥