Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 205
________________ [ सूत्रकृतांगसूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध ८४५ – उसी वनखण्ड के गृहप्रदेश में (जहाँ घर बने हुए थे वहाँ ) भगवान् गौतम गणधर (भगवान् महावीर के पट्टशिष्य इन्द्रभूति गौतम) ने (ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए ) निवास (विहार) किया । (एक दिन ) भगवान् गौतम उस वनखण्ड के अधोभाग में स्थित आराम ( मनोरथ नामक उद्यान) में (अपने शिष्यसमुदाय सहित) विराजमान थे । इसी अवसर में मेदार्यगोत्रीय एवं भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी का शिष्य संतान निर्ग्रन्थ उदक पेढालपुत्र जहाँ भगवान् गौतम विराजमान थे, वहाँ उनके समीप आए। उन्होंने भगवान् गौतमस्वामी के पास आकर सविनय यों कहा - " प्रायुष्मन् गौतम ! मुझे आप से कोई प्रदेश (शंकास्पदस्थल या प्रश्न ) पूछना है, ( उसके सम्बन्ध में) आपने जैसा सुना है, या निश्चित किया है, वैसा मुझे विशेषवाद (युक्ति) सहित कहें ।" इस प्रकार विनम्र भाषा में पूछे जाने पर भगवान् गौतम ने उदक पेढालपुत्र से यों कहा - " हे आयुष्मन् ! आपका प्रश्न (पहले) सुन कर और उसके गुण-दोष का सम्यक् विचार करके यदि मैं जान जाऊंगा तो उत्तर दूंगा । १८८] विवेचन - उदकनिर्ग्रन्थ की जिज्ञासा - गणधर गौतम की समाधान - तत्परता - गणधर गौतम के आवास-स्थान पर उदक निर्ग्रन्थ ने आकर कुछ प्रष्टव्यस्थल के सम्बन्ध में बताने के लिए उनसे निवेदन किया, तथा श्री गौतम स्वामी ने उसी सद्भाव से समाधान करने की तैयारी बताई, इसी का वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है । ' उदकनिर्ग्रन्थ की प्रत्याख्यानविषयक शंका : गौतमस्वामी द्वारा स्पष्ट समाधान - ८४६– (१) सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वदासी - श्राउसंतो गोतमा ! श्रत्थि खलु कुमारपुत्तिया नाम समणा निग्गंथा तुब्भागं पवयणं पवयमाणा गाहावत समणोवासगं एवं पच्चक्खावेंति - नन्नत्थ प्रभिजोएणं गाहावतीचरग्गहणविमोक्खणयाए तसेहि पाणेहि निहाय दंडं । एवहं पच्चवखंताणं दुपच्चक्खायं भवति, एवण्हं पच्चक्खावेमाणाणं दुपच्चवखावियं भवइ एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा प्रतियरंति सयं पइण्णं, कस्स णं तं हेउं ? संसारिया खलु पाणा, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति तसावि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावर कायातो विष्पमुच्चमाणा तसकार्यसि उववज्जंति, तसकायातो विष्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जंति, तेसि च णं थावरकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं धत्तं । (२) एवहं पच्चक्खंताणं सुपच्चक्खातं भवति, एवहं पच्चक्खावेमाणाणं सुपच्चक्खावियं भवति, एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा णातियरंति सयं पतिष्णं, णण्णत्थ श्रभिश्रोगेणं गाहावतीचोरग्गहणविमोक्खणता तसभूतेह पाणेह निहाय दंडं । एवमेव सति भासापरक्कमे विज्जमाणे जे ते कोहा वा लोभा वा परं पच्चक्खावेंति, श्रयं पि णो देसे कि णो णेप्राउए भवति, श्रवियाई श्राउसो गोयमा ! तुब्भं पि एवं एवं रोयति ? ८४६ - [१] वादसहित प्रथा सद्वचनपूर्वक उदक पेढालपुत्र ने भगवान् गौतम स्वामी से इस प्रकार कहा—“आयुष्मन् गौतम ! कुमारपुत्र नाम के श्रमण निर्ग्रन्थ हैं, जो आपके प्रवचन का (के अनुसार) उपदेश-प्ररूपण करते हैं । जब कोई गृहस्थ श्रमणोपासक उनके समीप प्रत्याख्यान (नियम) १. सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक ४०९ का सारांश

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