Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ सूत्रकृतांगसूत्र - द्वितीय श्र ुतस्कन्ध प्राणं संजते, इयाणि ग्रस्संजते, प्रस्संजयस्स णं सव्वपार्णेह जाव सव्वसत्तेहि दंडे जो णिक्खित्ते मति से एवमायाणह नियंठा !, से एवमायाणितव्वं ।
८५४—भगवान् श्री गौतमस्वामी ने आगे कहा कि निर्ग्रन्थों से पूछना चाहिए कि " श्रायुष्मान् निर्ग्रन्थो ! इस लोक में गृहपति या गृहपतिपुत्र उस प्रकार के उत्तम कुलों में जन्म ले कर धर्म-श्रवण के लिए साधुत्रों के पास आ सकते हैं ?"
निर्ग्रन्थ- 'हाँ, वे श्रा सकते हैं ।'
श्री गौतमस्वामी - "क्या उन उत्तमकुलोत्पन्न पुरुषों को धर्म का उपदेश करना चाहिए ?" निर्ग्रन्थ - - 'हाँ, उन्हें धर्मोपदेश किया जाना चाहिए ।'
श्री गौतमस्वामी - क्या वे उस ( तथा प्रकार के ) धर्म को सुन पर, उस पर विचार करके ऐसा कह सकते हैं कि यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है, अनुत्तर (सर्वश्रेष्ठ ) है, केवलज्ञान को प्राप्त कराने वाला है, परिपूर्ण है, सम्यक् प्रकार से शुद्ध है, न्याययुक्त है ( या मोक्ष की ओर ले जाने वाला है) 'माया - निदान - मिथ्या - दर्शनरूपशल्य को काटने वाला है, सिद्धि का मार्ग है, मुक्तिमार्ग है, निर्याण (मुक्ति) मार्ग है, निर्वाण मार्ग है, अवितथ ( यथार्थ या मिध्यात्वरहित) है, सन्देहरहित है, समस्त दुःखों को नष्ट करने का मार्ग है; इस धर्म में स्थित हो कर अनेक जीव सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं, तथा समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । अतः हम धर्म (निर्ग्रन्थप्रवचन) की आज्ञा के अनुसार, इसके द्वारा विहित मार्गानुसार चलेंगे, स्थित (खड़े) होंगे, बैठेंगे, करवट बदलेंगे, भोजन करेंगे, तथा उठेंगे। उसके विधानानुसार घर बार आदि का त्याग कर संयमपालन के लिए अभ्युद्यत होंगे, तथा समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों की रक्षा के लिए संयम धारण करेंगे । क्या वे इस प्रकार कह सकते हैं ?"
निर्ग्रन्थ- 'हाँ वे ऐसा कह सकते हैं ।'
श्री गौतमस्वामी - "क्या इस प्रकार के विचार वाले वे पुरुष प्रव्रजित करने ( दीक्षा देने ) योग्य हैं ? "
निन्- 'हाँ, वे प्रव्रजित करने योग्य हैं ।'
श्री गौतमस्वामी - "क्या इस प्रकार के विचार वाले वे व्यक्ति मुण्डित करने योग्य हैं ? " निर्ग्रन्थ- 'हाँ वे मुण्डित किये जाने योग्य हैं ।'
श्री गौतमस्वामी - "क्या वे वैसे विचार वाले पुरुष ( ग्रहणरूप एवं आसेवनारूप ) शिक्षा देने के योग्य हैं ? "
निग्रंथ - 'हाँ, वे शिक्षा देने के योग्य हैं ।'
श्री गौतमस्वामी - "क्या वैसे विचार वाले साधक महाव्रतारोपण ( उपस्थापन ) करने योग्य हैं ?"
निर्ग्रन्थ -
- 'हाँ, वे उपस्थापन योग्य हैं ।'
श्री गौतमस्वामी - "क्या प्रव्रजित होकर उन्होंने समस्त प्राणियों, तथा सर्वसत्त्वों को दण्ड देना ( हनन करना) छोड़ दिया ?"
निर्ग्रन्थ- 'हाँ, उन्होंने सर्वप्राणियों की हिंसा छोड़ दी ।'