Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नालन्दकीय : सप्तम अध्ययन : सूत्र ८६६ ]
[२१३ भगवं च णं उदाहु-'भगवान्' शब्द का अर्थ वृत्तिकार ने गौतमस्वामीपरक किया है, जबकि चूर्णिकार ने 'भगवान्' का अर्थ-'तीर्थंकर' किया है । और 'च' शब्द से उनके शिष्य तथा अन्य तीर्थंकर समझ लेना चाहिए । 'उदाहु' से अभिप्राय है-श्रावक दो प्रकार के होते हैं-साभिग्रह और निरभिग्रह। यहाँ 'साभिग्रह' श्रावक की अपेक्षा से कहा गया है।'
'मा खलु मम अटाए..."तत्थ वि पच्चाइक्खिस्सामो' का तात्पर्य चूर्णिकार के अनुसार यह है-'मेरे लिए कुछ भी रांधना, पकाना, स्नान, उपमर्दन, विलेपन आदि मत करना, यह बात अपनी पत्नी या अन्य महिला आदि से कहता है । तथा गृहप्रमुख महिला दासियों या रसोई बनाने वाले रसोइयों से ऐसा संदेश देने को कहती है—मत कराना । अथवा सामायिक में स्थित व्यक्ति, अकर्तव्य है, उसका भी प्रत्याख्यान करेंगे।
तेतहा कालगता....."सम्म....."वत्तव्वं सिया' का तात्पर्य-चूर्णिकार के अनुसार इस प्रकार है-वे वैसी पोषधव्रत की स्थिति में शीघ्र प्रभावकारी किसी व्याधि या रोगाक्रमण से, उदरशूल आदि से अथवा सर्पदंश से, अथवा सर्वपौषध में भयंकर तफान-झंझावात प्रादि से. या व्याघ्रादि के आक्रमण से, या दीवार के गिरने से कदाचित् कालधर्म को प्राप्त हो जाए तो क्या कहा जाएगा? यही कहा जाएगा कि सम्यक् (समाधिपूर्वक) काल-मृत्यु को प्राप्त हुआ है; यह नहीं कहा जाएगा कि बालमरणपूर्वक मृत्यु हुई है।' - 'त्रस बहुतर, स्थावर अल्पतर' का रहस्य-वृत्तिकार के अनुसार-उदक निर्ग्रन्थ के कथनानुसार सभी स्थावर जब त्रस के रूप में उत्पन्न हो जाएंगे, तब केवल त्रस ही संसार में रह जाएंगे, जिनके वध का श्रावक प्रत्याख्यान करता है, स्थावरप्राणियों का सर्वथा अभाव हो जाएगा। अल्प शब्द यहाँ अभाववाची है । इस दृष्टि से कहा गया है कि त्रस बहुसंख्यक हैं, स्थावर सर्वथा नहीं हैं, इसलिए श्रावक का प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है। १. (क) 'भगवं' तित्थगरो, 'च' शब्देन शिष्याः, ये चान्ये तीर्थंकराः'
-सूत्रकृतांग चूणि (मू. पा. टिप्पण) पृ. २४५ । (ख) भगवं च णं उदाहु-गौतमस्वाम्येवाह-सूत्रकृ. शी. वृत्ति, २ (क) मा खलु मम अट्ठाए किंचि-रंधण-पयण-हाणुम्मद्दण-विलेवणादि करेध महेलियं अण्णं वा भणति ।
कारवेहित्ति-इस्सरमहिला दासीण महाण सियाण वा संदेसगं देति । तत्थ वि पविस्सामो ति एवं पगारे संदेसए दातव्वे, अधवा यदन्यत् सामाइअकडेणाकर्तव्यं तत्थ वि पच्चक्खाणं करिस्सामो।'
-सूत्रकृतांग चूणि (मू. पा. टि.) पृ. २४५ (ख) "मदर्थं पचनपाचनादिकं पौषधस्थस्य मम कृते मा कार्षीः, तथा परेण मा कारयत, तत्रापि अनुमतावपि सर्वथा यदसम्भवि तत् प्रत्याख्यास्यामः।"
-सूत्र कृ. शीलांक वृत्ति, पत्रांक ४२० ३. जे पुण ते तथा पोसधिया चेव कालं करेज्ज, पासुक्कार गेलण्णेण सूलादिणा अहिडक्का य, णाणु पोसधकरणेण
चेव दंडणिक्खेवो। एवं सव्वपोसधे विज्जणीवातादिएण वा वग्घादीण वा कुड्डपडणेण वा ते कि ति वत्तव्वा सम्मं कालगता, न बालमरणेनेत्यर्थः ।
-सूत्रकृ. चूणि, (मू. पा. टिप्पण) पृ. २४५ ४. सूत्र कृ. शी. वत्ति पत्रांक ४१६
--सूत्र कृ. चूणि (मू. पा. टि) पृ. २४६