Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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date : छठा अध्ययन : सूत्र ८४१ ]
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नरकगामी हैं । वे स्वपर अहितकारी सम्यग् ज्ञान से कोसों दूर हैं। अगर अल्प संख्या में जीवों का वध करने वाले को अहिंसा का आराधक कहा जाएगा, तब तो मर्यादित हिंसा करने वाला गृहस्थ भी हिंसादोष रहित माना जाने लगेगा ( ३ ) अहिंसा की पूर्ण आराधना ईर्यासमिति से युक्त भिक्षाचरी के ४२ दोषों से रहित भिक्षा द्वारा यथालाभ सन्तोषपूर्वक निर्वाह करने वाले सम्पूर्ण अहिंसा महाव्रती भिक्षु द्वारा ही हो सकती है । "
दुस्तर संसार समुद्र को पार करने का उपाय : रत्नत्रयरूप धर्म
८४१ – बुद्धस्स प्राणाए इमं समाहि, श्रस्सि सुठिच्चा तिविहेण ताती । तरि समुद्दे व महामवोघं आयाणवं धम्ममुदाहरेज्जासि ॥५५॥ त्ति बेमि ॥
॥ श्रइज्जं : छ प्रज्भयणं सम्मत्तं ।।
८४१-तत्त्वदर्शी केवलज्ञानी भगवान् की प्रज्ञा से इस समाधियुक्त (शान्तिमय) धर्म को अंगीकार करके तथा इस धर्म में सम्यक् प्रकार से सुस्थित होकर तीनों करणों से समस्त मिथ्यादर्शनों से विरक्ति रखता हुआ साधक अपनी और दूसरों की आत्मा का त्राता बनता है । अतः महादुस्तर समुद्र की तरह संसारसमुद्र को पार करने के लिए आदान - ( सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र) रूप धर्म का निरूपण एवं ग्रहण करना चाहिए ।
॥ श्रार्द्र कीय छठा श्रध्ययन समाप्त ।।
१. सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ४०३-४०४ का सारांश