Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ७७४-माया और लोभ नहीं हैं, इस प्रकार की मान्यता नहीं रखनी चाहिए, किन्तु माया है और लोभ भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए।
७७५–णत्थि पेज्जे व दोसे वा, णेवं सणं निवेसए।
अस्थि पेज्जे व दोसे वा, एवं सणं निवेसए ॥२२॥ ७७५-राग और द्वेष नहीं है, ऐसी विचारणा नहीं रखनी चाहिए, किन्तु राग और द्वष हैं, ऐसी विचारणा रखनी चाहिए।
७७६-पत्थि चाउरते संसारे, णेवं सणं निवेसए ।
अस्थि चाउरते संसारे, एवं सण्णं निवेसए ॥२३॥ ७७६–चार गति वाला संसार नहीं है, ऐसी श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए, अपितु चातुर्गतिक संसार (प्रत्यक्षसिद्ध) है, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए।
७७७–णत्थि देवो व देवी वा, णेवं सण्णं निवेसए ।
अस्थि देवो व देवी वा, एवं सणं निवेसए ॥२४॥ . ७७७-देवी और देव नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, अपितु देव-देवी हैं, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए।
७७८–नत्थि सिद्धी प्रसिद्धी वा, णेवं सणं निवेसए ।
अस्थि सिद्धी प्रसिद्धी वा, एवं सणं निवेसए ॥२५॥ ७७८-सिद्धि (मुक्ति) या असिद्धि (अमुक्तिरूप संसार) नहीं है, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए, अपितु सिद्धि भी है और प्रसिद्धि (संसार) भी है, ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए। ___ ७७६-नत्थि सिद्धी नियं ठाणं, णेवं सण्णं निवेसए ।
अस्थि सिद्धी नियं ठाणं, एवं सणं निवेसए ॥२६॥ ७७९-सिद्धि (मुक्ति) जीव का निज स्थान (सिद्धशिला) नहीं है, ऐसी खोटी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत सिद्धि जीव का निजस्थान है, ऐसा सिद्धान्त मानना चाहिए।
७८०-नत्थि साहू असाहू वा, णेवं सणं निवेसए ।
अस्थि साहू असाहू वा, एवं सण्णं निवेसए ॥२७॥ ७८०-(संसार में कोई) साधु नहीं है और असाधु नहीं है, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत साधु और असाधु दोनों हैं, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए।
७८१–नत्थि कल्लाणे पावे वा, णेवं सणं निवेसए ।
अत्थि कल्लाणे पावे वा, एवं सणं निवेसए ॥२८॥