Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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क्रिमास्थान : द्वितीय अध्ययन : सूत्र ७१३ ]
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क्लेश (पीड़ा) देने से निवृत्त नहीं होते, ये तथा अन्य प्रकार के (परपीड़ाकारी) सावध कर्म हैं, जो बोधिबीजनाशक हैं, तथा दूसरे प्राणियों को संताप देने वाले हैं, जिन्हें क्रू र कर्म करनेवाले अनार्य करते हैं, उन (दुष्कृत्यों) से जो जीवनभर निवृत्त नहीं होते, (इन सब पुरुषों को एकान्त अधर्मस्थान में स्थित जानना चाहिए।)
जैसे कि कई अत्यन्त क्रू र पुरुष चावल, (या कलाई, गवार), मसूर, तिल, मूग, उड़द, निष्पाव (एक प्रकार का धान्य या वालोर) कुलत्थी, चंवला, परिमंथक (धान्यविशेष, काला चना)
आदि (के हरे पौधों या फसल) को अपराध के बिना (अकारण) व्यर्थ (निष्प्रयोजन) ही दण्ड देते (हनन करते) हैं । इसी प्रकार तथाकथित अत्यन्त क्रू र पुरुष तीतर, बटेर (या बत्तख), लावक, कबूतर, कपिंजल, मृग, भैंसे, सूअर, ग्राह (घड़ियाल या मगरमच्छ), गोह, कछुआ, सरीसृप (जमीन पर सरक कर चलने वाले) आदि प्राणियों को अपराध के बिना व्यर्थ ही दण्ड देते हैं।
उन (क्रू र पुरुषों) की जो बाह्य परिषद् होती है, जैसे दास, या संदेशवाहक (प्रष्य) अथवा दूत, वेतन या दैनिक वेतन पर रखा गया नौकर, (उपज का छठाभाग लेकर) बटाई (भाग) पर काम करने वाला अन्य काम-काज करने वाला (ककर) एवं भोग की सामग्री देने वाला, इत्यादि ।
__इन लोगों में से किसी का जरा-सा भी अपराध हो जाने पर ये (क्रूरपुरुष) स्वयं उसे भारी दण्ड देते हैं। जैसे कि-इस पुरुष को दण्ड दो या डंडे से पीटो, इसका सिर मूड दो, इसे डांटोफटकारो, इसे लाठी आदि से पीटो, इसकी बाँहें पीछे को बाँध दो, इसके हाथ-पैरों में हथकड़ी और बेड़ी डाल दो, उसे हाडीबन्धन में दे दो, इसे कारागार में बंद कर दो, इसे हथकड़ी-बेड़ियों से जकड़ कर इसके अंगों को सिकोड़कर मरोड़ दो, इसके हाथ काट डालो, इसके पैर काट दो, इसके कान काट लो, इसका सिर और मुंह काट दो, इसके नाक-ओठ काट डालो, इसके कंधे पर मार कर आरे से चीर डालो, इसके कलेजे का मांस निकाल लो, इसकी आँखें निकाल लो, इसके दाँत उखाड़ दो, इसके अण्डकोश उखाड़ दो, इसकी जीभ खींच लो, इसे उलटा लटका दो, इसे ऊपर या कुए में लटका दो, इसे जमीन पर घसीटो, इसे (पानी में) डुबो दो या घोल दो, इसे शूली में पिरो दो, इसके शूल चुभो दो, इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो, इसके अंगों को घायल करके उस पर नमक छिड़क दो, इसे मृत्युदण्ड दे दो, (या चमड़ी उधेड़ कर उसे बंट कर रस्सा-सा बना दो), इसे सिंह की पूछ में बाँध दो (या चमड़ी काट कर सिंह पुच्छ काट बना दो) या उसे बैल की पूछ के साथ बांध दो, इसे दावाग्नि में झौंक कर जला दो, (अथवा इसके चटाई लपेट कर आग से जला दो), इसका माँस काट कर कौओं को खिला दो, इस को भोजन-पानी देना बंद कर दो, इसे मार-पीट कर जीवनभर कैद में रखो, इसे इनमें से किसी भी प्रकार से बुरी मौत मारो, (या इसे बुरी तरह से मार-मार कर जीवनरहित कर दो)।
इन कर पुरुषों की जो प्राभ्यन्तर परिषद होती है, वह इस प्रकार है जैसे कि-माता, पिता भाई, बहन, पत्नी, पुत्र, पुत्री, अथवा पुत्रवधू आदि । इनमें से किसी का जरा-सा भी अपराध होने पर वे क्रूरपुरुष उसे भारी दण्ड देते हैं । वे उसे शर्दी के दिनों में ठंडे पानी में डाल देते हैं। जो-जो दण्ड मित्रद्वषप्रत्ययिक क्रियास्थान में कहे गए हैं, वे सभी दण्ड वे इन्हें देते हैं। वे ऐसा करके स्वयं अपने परलोक का अहित करते (शत्रु बन जाने) हैं । वे (क्रूरकर्मा पुरुष) अन्त में दुःख पाते हैं, शोक करते हैं, पश्चात्ताप करते हैं, (या विलाप करते हैं), पीड़ित होते हैं, संताप पाते हैं, वे दुःख, शोक, विलाप (या पश्चात्ताप) पीड़ा, संताप, एवं वध-बंध आदि क्लेशों से निवृत्त (मुक्त) नहीं हो पाते।