Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 944
________________ ए१४ वितीये सूत्रकृतांगे वितीय श्रुतस्कंधे षष्ठाध्ययनं. स्तु स्वरूपावि वने परापवादः । तथाचोक्तं । “नेत्रौर्नरीदय बिलकंटककीटसान, सम्यक् यथा व्रजत तान्परित्हत्य सर्वान् ॥ कुज्ञानकुश्रुतिकुमार्गकुदृष्टिदोषा,न्सम्यग्विचारयति कोत्र परापवाद"इत्यादि । यदिचैकांतवादिनामेवास्त्येव नास्त्येवान्युपगमवतामयं परस्प रगर्हारख्योदोषोनास्माकमनेकवादिनां सर्वस्यापि सदादेः कथंचिदन्युपगमात् । एतदेव श्लो कपश्चाईन दर्शयति (स्वतइति ) स्वव्यदेवकालनावैरस्ति तथा (परतइति) परव्या दिनि स्तीत्येवं परान्युपगमं दूषयंतोगर्हामोऽन्यानेकांतवादिनस्तत्स्वरूपनिरूपणतस्तु रा गषविरहान्न किंचिजहार्मति स्थितं ॥ १२ ॥ ण किंचि रूवेण निधारयामो, सहिहिमग्गं तु करेमि पा॥ म ग्गे इमे किट्टिए आरिएदि, अणुत्तरे सप्पुरिसेहिं अंजू ॥१३॥ हूं अदेयं तिरियं दिसासु,तसाय जे थावरजेयपाणा॥ नूयादि संकानि गुंबमा णा, गो गरदती बुसिमं किंचि लोए ॥१४॥ अर्थ-वली आईकुमार कहेले के, अहो गोशालक ! अमें (एकिंचिरूवेणनिधारया मो के०) कोइ पण श्रमण ब्राह्मणने रूवेण एटले अगंबनिक एवा अंगोपांगने उघाड वे, अथवा जातिना दोषनें अनिधारयामो एटले प्रगट करीने निंदता नथी, किंतु ? ( सदिहिमग्गंतुकरेमिपा के० ) स्वदृष्टिमार्ग एटले पोतानुं शासन प्रगट करिये बैयें, अथवा तेउना मागेनुं स्वरूप कहियें बैयें, वली जे विधिये ते पोताना मार्गनी स्थिति कहेले के, “ब्रह्मा खूनशिराः” इत्यादिक ते अमें पण सांनलियें बै, परंतु अमें कोई नो अपवाद बोलता नथी. हवे आईकुमार, गाथाना उत्तराईवडे पोताना दर्शननु स्व रूप कहेले. (मग्गेश्मे किट्टिएपारिएहिं के०) ए मार्ग जे सम्यक् दर्शनादिकडे,ते आर्य एवा जे श्रीसर्वदेव तेणें कह्यो.ते मार्ग केवो तोके, (अणुत्तरेसप्प रिसे हिंअंजू के०) ए मार्ग अनुत्तर एटले एना सरखो बीजो कोइ पण मार्ग जगत् मांहे नथी, वली ते सर्वज्ञ के वाडे तोके सत्पुरुष चोत्रीश अतिशयें करी बिराजमान, एवाप्रधान पुरुष जगत् मांहे बीजा कोइ नथी, ते कारणे सत्पुरुष केवायडे, वली ए मार्ग केवोडे तोके, अंजू एटले सरल अकुटिल ॥१३॥ वली पण धर्मनुंज स्वरूप कहेले.(नइंअहेयंतिरियंदिसासु के०) ऊर्ध्व अधो अनें तिर्यक् ए समस्त दिशाउने विषे एतावता चौदरज्ज्वात्मक लोक मांहे, (तसायजेथावरजेयपाणा के०) जे त्रस अने स्थावर प्राणीने तेना पालनार, तथा (नयाहिसंकानिगुबमाणा के०)प्राणघातनी शंकायें सावद्यानुष्ठाननेंड्गं बता, (गो गरहतीबुसिमंकिंचिलोए के० ) एवा संयमवंत पुरुषो लोक मांहे जे ले, ते कोश्न गर्दै Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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