Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 1004
________________ UH द्वितीये सूत्रकृतांगे द्वितीय श्रुतस्कंधे सप्तमाध्ययनं . यमपि तुल्येप्यर्थे सत्येक पक्षस्याक्रोशनमपरस्य विशेषणपक्षस्यानिनंदन मित्येषदोषाच्युप गमोजवतां नो नैयायिकोन न्यायोपपन्नोजवत्युनयोरपि पक्षयोः समानत्वात्केवलं सविशेषणपदे नूतशब्दोपादानं मोहमावहतीति ॥ ए ॥ भगवंचणं दादु संतेगइया मगुस्सा नवंति तेसिंचणं एवं वृत्तं पुखं नवइ पो खलु वयं संवाएमो मुंमा नवित्ता आगा रान पगारियं पत्तए पावय एवं अणुपुवेणं गुत्तस्स लिसि सामो ते एवं संखेति ते एवं संखं व्वयंति ते एवं संखं वा वयंति नन्नच अभिनणं गादावश्चोरग्गद्ाविमोकलयाए त सेदिं पादि निहाय दमं तंपि तेसिं कुसलमेव जवइ ॥ १० ॥ अर्थ- हवे एज प्रर्थनें दीपाववा माटें ( जगवंच पंचदादु के० ) नगवंत श्री गौतम स्वामी कहे . ( संतेगश्यामपुस्सानवंति के० ) कोई एक हलवां कर्म वाला मनुष्य हो य, ते प्रवर्ज्या पालवानें असमर्थ होय, (ते सिंच एवं तं पुनवइ के० ) तेणें पू र्वे एम कयुं होय, शुं युं होय? ते कहे. (लोखलु वयं संवाए मोमुंमान वित्ता के ० ) नि मेति होवानें समर्थ नथी, (खागाराख लगा रिपइत्तए के ० ) गृहस्थावास त्यागिनें गारपणुं अंगीकार करी शकता नथी. ( पावयहं पुपुवेणं के० ) में घर थकी निकलीने वर्ज्या इने अनुक्रमें, (गुत्तस्स लिसिस्सामा के० ) साधुपएं पाल, एट शुं युं ? तोके, प्रथमतो देशविरतिरूप, श्रावकनो धर्म पालगुं, खनें अनुक्रमें प श्रमणनो धर्म पालयं. ( तेएवं संखेवेंति के० ) ते एवी व्यवस्था संनलावे ( तेएवं सं dai ho) ते पुरुष, एवी व्यवस्था स्थापन करे एटले एवी रीतें पञ्चखाण करे, ( ते एवं संखंगवयंति के ० ) नें पढी तेज प्रमाणे मनमां रुडा प्रकारे स्थापन करे. ते Tea, (न नि एवं के० ) राजादिकना यनियोगें करी त्रसप्राणीनी घातथी मारो व्रतनंग नयी. इत्यादिक पञ्चखाण, साधुनो उपदेश सांजली करे. तेनी नपर ( गाहावइचोरग्गह विमोकणयाए के० ) गृहपति जे चोर तेनुं गृहण तथा विमोक्ष जेम, एव गृहपति तथा राजानो दृष्टांत कहे. रत्नपुरनामा नगरनें विषे रत्नशेखर राजा हतो. तेथे एकदा एवो विचार को के, या कौमुदी महोत्सव करवो., पढी रत्नमाला प्रमुख पोतानी स्त्रीयोनें या वा तनी विज्ञापना करावी जे, स्वतंत्रक्रीडा, चंदनी चांदनीमां व्यापणे करवी. वली पोता ना नगरमा पण उद्घोषणा देवरावी जे, कोई मनुष्यें खाज रात्रें नगरमां न रहेवुं, घनें Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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