Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 995
________________ रायधनपतसिंघ बादाडुरका जैनागम संग्रह नाग इसरा. ६ ना मनो निषेध को तेने उदक पोताना व्यनिप्रायें करी दूषवेडे. ( एवं सहं पञ्च रकंताणंडुपञ्चरकार्यनवइ के० ) हो गौतम ! ण एवे वाक्यालंकारे ए रीतें त्रसप्रा लीना दंमनो निषेध करीनें पञ्चरकाण करतां दुष्ट प्रत्याख्यान थाय ( एवं एहंप चरकावेमा पाडुपञ्चरका वियद्यनवइ के० ) एम पच्चरकाण करावनारनें पण, डुष्ट प्र व्याख्यान कराव्युं, एम थाय. ते कहेबे ( एवंतेपरं पञ्चरका वेमाला के० ) ए रीतें ते पञ्चरका करनार श्रावक, पर्ने पञ्चरकाण करावनार साधु बेडु, ( सयंपत्ति के० ) पोतानी प्रतिज्ञानें ( प्रतियरंति के० ) उल्लंघन करेबे, एतावता व्रतनंग करेले . ( क तं देवं के०) ते केवा हेतु थकी प्रतिज्ञा जंग थाय? ते प्रतिज्ञा जंगनुं कारण कहे ( सांसारियाखनुपाणा के० ) नि संसारी जीव, ( थावरा विपाणा के ० ) जे पृथ्वी, अप्, तेन, वायु, वनस्पति रूप स्थावर जीव ते पण (तसत्ताएपञ्चायंति के ० ) तेवा कर्मना दथक त्रस पणे उपजे, ( तसा विषाणायावरत्ताएपञ्चायंति के०) तथा त्रस जे बेइिं यादिक जीवोबे ते पण स्थावर पणे उपजे, (थावर कायाविप्प मुच्चमाणात सकार्य सिनवव ऊंति के ० ) स्थावरनी कायथकी मूकारणा सकायनें विषे उपजे. (तसकायाविप्पमुच्च मालाश्रावर कार्य सिचववर्द्धति के० ) सकाय थकी मूकाला थका स्थावरकायने विषे उप जे कामाटें (ते सिंचथावर कार्यं सिडववाणं के० ) त्रसजीव स्थावरकाय मांहे जे वारे उपना, तेवा (ठाणमेयंधत्तं के० ) ते स्थानक त्रसकायनुं दणाणुं ए कारण मा टें प्रतिज्ञानंग थाय. जेम कोइ एके एवी प्रतिज्ञा करी जे महारे नागरीक पुरुष हणवो नहीं. ने पढ़ी तेज नागरीक पुरुष कोई धारामादिकने विषे बेठो होय, त्यां तेने ह तो तेन प्रतिज्ञानंग न थाय ? अपितु थायज तेम खंहीं पण त्रसजीवना घातनी निवृत्ति करी, खनें स्थावर जीवना घातनी निवृत्ति नथी करी तो, जे वारें सजीव स्थावर मांहे यावी उपजे तेवारे तेथे ते त्रसजीवज विणाश्या, एम करतां प्रतिज्ञानो नंग थयो ॥ ६ ॥ ॥ दीपिका - नो गौतम ! यति संति कुमारपुत्रानाम निर्यथा युष्मदीयं प्रवचनं प्रवदंतः । तथाहि गृहपतिं श्रमणोपासकं उपसंपन्न नियमग्रहणोद्यतं प्रत्याख्यापर्यंत प्रत्याख्यानं कारयति तद्यथा । त्रसेषु दंमं हिंसां निहाय त्यक्त्वा प्राणातिपातनिवृत्ति कुर्वेति ( एम बे ति ) नान्यत्र स्वमतेरन्यत्र राजाद्य नियोगेन यः प्राणिघातोन तत्र निवृत्तिरिति तत्र स्थूल प्राणिविशेषणात्तदन्येषां जीवानां हिंसातु मतिदोषः स्यादित्याशंकावान् प्राह । ( गाहा वइचोरति ) यस्यार्थोऽये नावयिष्यते ( एवं एहति) उदकवाह । एहमिति वाक्यानं कारे । एवं प्रत्याख्यानं कुर्वतां श्राद्धानां दुःखप्रत्याख्यातं नवति प्रत्याख्यानजंगसद्भावा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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