Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
भोजनतो द्वितीयगुणव्रतस्य पश्चातिचाराः
॥८५॥
रंधणकंडणपीसणदलणं पयणं च एवमाईणं । निच्चपरिमाणकरणं, अविरइबंधो जओ गरुओ ॥१॥" एत्थ वि रक्कसिं चेव जं कीरए कम्मं पहारववहरणाइ विवक्खाए तं उवभोगो, पुणो पुणो य ज कीरइ तं पुण परिभोगोत्ति, अन्ने पुण कम्मपक्खे उवभोगपरिभोगजोयणं न करेंति, उवभोगपरिभोगवए कम्मुणो पुण भणणं उवभोगाइकारणभावेण, उवभोगाइकारण कम्म तेण इह वए भणियं ।। २१॥ दोसगुणा आगमानुसारेण वत्तवा । जयणा पुण-"जत्थ बहूणं घाओ जीवाणं होइ भुजमाणमि । तं वत्थु वजेजा अइप्पसंगं च सेसेसु ॥१॥" एवमादि कायवा । उभयरूवेवि एत्थ अइयारा भन्नति--
सच्चित्तं पडिबद्धं अपउलदुपउलतुच्छ भक्खणयं । वजइ कम्मयओवि एत्थं इंगालकम्माय ॥ २२ ॥
सावगेण हि भोयणओ किर उस्सग्गेण निरवजाहारेण होयवं, कम्मओ पुण पाएण निरवजकम्माणुट्ठाणेण, भणियं च"निरवजाहारेणं निजीवेणं परित्तमीसेणं । अप्पा संथारेजा कम्मं च चएज सावजे ॥१॥" अओ एवंविहसावगावेकखाए अभिग्गहविसेसं वा पडुच्च जहासंभवं एए अइयारा दट्ठवा, तत्य य भोयणओ ताव मन्नंति-सचित्तंति सचेतणं कंदादित वजेइ, इह सहसाकारअणाभोगेहिं अइक्कमवइक्कमअइयारेहिं वा सच्चित्तं आहारेंतस्स अइयारो होइ; अन्नहा पुण भंग एव । तहा | पडिबद्धं-संबद्धं सच्चित्तरुक्खेसु गुंदाइ पक्कफलाणि वा, पडिबद्धभक्खणं हि सावजाहारवजगस्स सावजाहारपवित्तिरूवत्ताओ अणाभोगाइणा अइयारो, अहवा मज्झटिगं सचेयणं छहिस्सामि कडाहं पुण अचेयणं भक्खइस्सामि, एवंविहबुद्धीए पक्कखज्जुराइफलं मुहे पक्खिवंतस्स सच्चित्तवञ्जगस्स सच्चित्तपडिबद्धाहारो अइयारो । तहा अपउलत्ति अपक्कं-अग्गिणा अपरिकम्मिय धन्न, दुप्पउलियं-दुपक्कं अद्धसिन्नं धनं, तुच्छंति निस्सारं कोमलमुग्गफलिमाइ, एएसिं धन्नाणं मक्खणं अइयारो, तत्थ
पं. चू०८
॥८५
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