Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 157
________________ 17) संस्तारविधिः श्रावकधर्म-2 पत्तो दुल्लभं एयं, नित्थिन्नोऽहं संसाराउत्ति धणिय झाणोवगओ भवइ, निजवगाणवि एवमुपजइ-कया णं अम्हेवि एवमम्मुपश्चाशक- जयमरणसमुद्दतीरं पत्ता होहामोति । तहा-केरिसी निजरा तस्स भवद ?, "कम्ममसंखेजभवं खवेइ अणुसमयमेव आउत्तो । चूर्णिः । अनयरंमि विजोगे सज्झायमी विसेसेणं ।। ४१॥" असंखेजमवंति जेण असंखेजभवे संसारे भामिजइ, अहवा जं असंखेजेहिं भवेहिं बद्धं, अन्नयरंमि वि, जोगेत्ति पडिलेहणाइवावारे १, एवं काउस्सग्गे विसेसेणं २, वेयावच्चे विसेसेणं ३, विसेसओ उत्त॥१३३॥ मटुंमि ४, तहा-संथारो उत्तमढे भूमिसिलाफलगमाइ नायबो, भूमीए पाहाणसिलातले वा दोसुवि अज्झुसिरेसु, तत्थ उद्दिअयओ वा उवविट्ठो वा निसन्नओ वा जहा समाहीए अच्छइ, फलए वा एगगिए, असइ अणेगंगिएवि, असइ कंबीसुवि । इयाणिं अत्थुरण-संथारपट्टमाई दुगचीराओ बहु वावि संथारओ सउत्तरपट्टओ पत्थरणं एवं उस्सग्गेणं, अववाए पुण जइ अइखरं नाहियासेइ ताहे कप्पा पत्थरिंजंति, असइ तणाणि अज्झुसिराणि, तहावि अणहियासेंतस्स कंबलओ पावारओ वा पत्थरिजइ पाउणिजइ वा सीए, तूलीए वा पत्थरिजइ, पल्लंकमाइसुवि पत्थरिजइ, "संथारओ उ मउओ समाहिहेतुं तु होइ कायद्यो । तहविय अविसहमाणो समाहिहेउं उदाहरणा ।। ४२ ॥ धीरपुरिसपन्नत्ते सप्पुरिसनिसेविए अणसणम्मि । धन्ना सिलायलगया निरवेयक्खा निवअंति ॥ ४३ ॥ जइ ताव सावयाउलगिरिकंदरविसमकडदुग्गेसु । साहिति उत्तमर्दु धिइधणियसहायमा धीरा ॥४४॥ किं पुण अणगारसहायगेण अन्नोन्नसंगहबलेण । परलोगिगे न सक्का साहेउं उत्तमे अडे ।।४५॥" परलोगिगेत्ति परलोगस्थिणा । " जिणवयणमप्पमेयं महुरं कन्नामयं सुणतेणं । सक्का हु साहु मज्झे संसारमहोदहि तरिउं ॥४६ ॥ सवे सबद्भाए सवण्णू सबकम्मभूमीसु । सबगुरुसबमहिया सवे मेरे[सिंग]मि अभिसित्ता ।। ४७ ॥ सबाहिवि लद्धीहि पं. चू. १२ For Private Personal Use Only NAGARAA% 2॥ १३३ ॥ Jain Education a l www.jainelibrary.org

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