Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 156
________________ श्रावकधर्मपश्चाशक चूर्णिः । ॥१३२॥ अष्टचत्वारिंशद् अनशनिनिर्यापकाः पंचण्हं इंदियाणं जत्थ इट्ठाणिट्ठविसया न संभवंति तत्थ चाउसालाईसु दुवे वसहीओ घेत्तुं एगस्थ भत्तपच्चक्खायओ ठविजइ एगत्थ सेसगछिल्लया, किं कारणं १, मा असणाइणं गंधेणं भत्तपच्चक्खायगस्स अभिलासो होही, जओ-" भुत्तभोगी पुरा जोवि गीयत्थो वि य भाविओ। संते साहारगंधेसु सो वि खिप्पं तु खुब्भइ ॥ ३५॥ निजवगा गाहा-"पासत्थोसन्नकुसीलठाणपरिवज्जियाउ निजवगा। पियधम्मा भवभीरूगुणसंपन्ना अपरितंता ॥ ३६ ॥ गुणसंपन्ना नाम जे विप्परिणयंपि पुणो पनवेंति तहातहा समाहिं च उप्पाइंति, किंतस्स ते करेंति ? केवइया वा भवंति ?, भन्नति जे तं उव्वत्तंति परियति य ते चत्तारि, जे अभंतरदारमूले तेवि ४, संथारकारया ४, तस्स धम्मकहेंतगा ४, वाइणो ४, अग्गओ जे अच्छंति ते ४, भत्तं जोग्ग जे आणति ते ४, पाणयं जे आणेति ४, उच्चारपरिट्ठवगा ४, पासवणपरिदुवगा४, चाहिं धम्मकहिणो ४, चउसुवि दिसासु साहस्सिमल्ला ४, एए वारस चउक्कया अडयालीसं (४८) भवंति, "जो जारिसओ कालो भरहेरवएसु होइ वासेसु । ते तारिसया तहया अडयालीसं तु निजवगा॥३७॥" एए अडयाली एक्ककपरिहाणीए परिहायमाणा जाव दोनि सिट्ठा तइयओ भत्तपच्चक्खायतो चेव, एएसि दोहं जणाणं एगो भत्तपाणयस्स वच्चइ वीउ भत्तपञ्चक्खाणिस्स पासे अच्छइ । तहा भत्तपच्चक्खायगस्स चरिमकाले आहारो दायबो, तहाहि-"तस्स य चरिमाहारो इट्ठो दायबो तण्हछेयट्ठा । सवस्स चरिमकाले अईव तण्हा समुञ्जो(पजइ) ॥३८॥विगइओ सबओयण अट्ठारसवंजणा य पाणं च । अणुपुबीविहारीणं च समाहिकामाण उवहरिउं ॥३९॥ को पुण गुणो भवइ ? चरिमाहारेण दिनेण भंते !, "तण्डा छेयंमि कए न तस्स तहियं पवत्तए भावो। चरिमं च एस भुजइ सद्धाजणणं दुपक्खेवि Bा॥४०॥ ति, भत्तपञ्चक्खायगस्स निजवगाण य कहं पुण सद्धाजणणं, सो चिंतेइ अहं अन्भुजयमरणसमुद्दती 8॥ १३२ ॥ JainEducation Int For Private Personal Use Only A ww.jainelibrary.org

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