Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 168
________________ श्रावकधर्म- पश्चाशक संलेखना___ याः पश्चातीचारा चूर्णिः । ॥ १४४॥ ROCESC5543 पवजं, जइ पुण तोऽणुव्वयाइयं धम्मं । सविसेसंपि करेइ उच्चारितो तयं चेव ॥४॥ थूलं पाणाइवायं दुविहं तिविहेण सावराह- पि । जाजीवं वोसिरिमो सुहुमंपि वणाइयं किंपि ॥ ५॥ वनस्पत्यादिकं, "एमेव सेसयाइवि वयाई गिण्हेज सुहुमतरगाई । तेसिं चिय अइयारे सवपयत्तेण वजेजा ॥६॥"तं चाणसणं कोई तिविहाहारपरिचागरूवं, कोइवि चउबिहाररूवं करेइ, तंपि कोऽवि सागारं, कोऽवि निरागारं करेइ, भणियं च-"अह संलिहियसरीरो जोगत्तं अप्पणो मुणेऊणं । अभिवंदिऊण देवे गुरू य कुजा अणसणं तं तु ॥१॥तिविहं चउविहं वा आहारं मुयह मुणियनियमावो । तं पुण सागारं वा करेज्ज अहवा निरागारं ॥ २॥ भवचरिमं पच्चक्खामि चउन्विहं अहव तिविहमाहारं । आगारचउक्केणं अन्नस्थिच्चाइणा संमं ।। ३ ।। एयं किल सागारं मयहरपभिइविवज्जियं इयरं । पाणाहारे कप्पड सुद्धोदगमेव से नवरं ॥ ४॥ अब्भंगाइ सव्वं समाहिहेउत्ति तस्स न विरुद्धं । जेण समाही एत्थं सारो सुगईए हेउत्ति ॥५॥ तं च करेंतो सवं संघ सत्वं च जीवसंघायं । खामेइ अप्पणा वि य खमेइ तेसिं च सन्वेसि ॥६॥ साहू य साहुणीओ सड्डा सड्डी य चउविहो संघो । आसाइओ मए जं तमहं तिविहेण खामेमि ॥७॥ सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करिय सीसे । अवराह खामेमि तस्स पसायाभिमुहचित्तो ॥८॥ खामेमि य सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएसु वेरं मज्झं न केणइ ॥९॥"त्ति ॥ तमि कए वज्जेज्जा पंचइयारे इमे उ जिणभणिए । इहपरलोए मरणे जीवियकामेसु आसंसा ॥१॥ ___ एईए गाहाए वक्खाणं-इहत्ति-इहलोगासंसप्पओगो इहलोगो-मणुस्सलोगो तम्मि आसंसा अभिलासो तीसे पओगो8| वावारणं, जहा-राया अमच्चो सेट्ठी वा भवेजामि अहं, रायाईणं रिद्धिं पत्थेइत्ति जं भणियं होइ, एवं परलोगासंसप्पओगो, GANAGAR ॥ १४४॥ Jain Education in For Private & Personel Use Only w w.jainelibrary.org

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