Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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विधिरतस्य भवविरह
श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ॥१५८॥
गोसे भणिओय विही इय अणवरयं तु चिट्ठमाणस्स । भवविरहबीयभूओ जायइ चारित्तपरिणामो ॥५०॥
गोसे-पमाए भणिओ चेव विही "नवकारेण विबोहो" एमाई, पुणोवि न भन्नइ, अणवरयं तु चेट्ठमाणस्स इति पुवमणियविहिणा नवकारवियोहाइणा अणवरयं-सयाकालं चेट्ठमाणस-भणियाणुठाणं करेंतस्स सावगस्स, कि होइ ?, भन्नइ-भवविरहबीयभूओ जायइ चारित्तपरिणामोत्ति भवविरहो-संसारविओगो तस्स वीयभूओ-कारणं भवविरहबीयभूओ जायइ-उप्पजइ चारित्तपरिणामो सबविरइपरिणामो, एवं हि देसविरइमणुसीलंतस्स उवायपवित्तीए अवस्सं भवविरहवीयभूओ चारित्तपरिणामो तंमि अन्नंमि वा भवे होइत्ति ॥ ५० ॥
पंचासगवित्तीओ आवस्सगसुत्तवित्तिचुन्नीणं । नवपयसावयपन्नत्तिमाइसत्थाण मज्झाओ ॥१॥ मंदमईण हियत्थं एसा चुन्नी समुद्धिया सुगमा । सिरिचंदकुलनहंगणमयंकसिरिचंदसूरीणं ॥२॥
सिरिवीरगणिमुणीसरकप्पूरसिद्धंतसिंधुसिस्साणं । सिस्से हिं सिवमणेहि सिरिमन्जसदेवसूरीहिं ॥३॥ नयणमुणिथाणुमाणे(११७२ )काले विगयंमि विक्कमनिवाओ । संसोहिया य एसा विबुहेहि समयनिउणेहिं ॥ ४ ॥
॥ इति श्रीश्रीचन्द्रसूरिशिष्याचार्यश्रीयशोदेवदृब्धा आद्य(श्रावक)पंचाशकचूर्णिः समाप्ता॥
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परिणामो सपरिणामोतिहमाणस्म-भाग मन्नइ, अ
RECARE CRORARIES
इति श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई-जैन-पुस्तकोद्धारे ग्रन्थाङ्कः १०२॥
CHECCANCICIROO
१५८॥
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