Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
युगपरमाणु
दृष्टान्तौ
॥१५६॥
R9516
तत्थ कच्छभो वाससए वाससए तए गीवं पसारेह, तेण कहवि गीवा पसारिया जाव तेण छिडेण निग्गया, तेण जोइसं दि8 कोमुइयाए, सो गओ सयणिज्जयाण दाएमि, आणेत्ता सबतो पलोएति ण पेच्छति, अवि सो न य माणुसाओ०८।
जुगदिदंतो जहा-" पुवंते होज जुगं अवरंते तस्स होज समिला उ । जुगछिडुमि पवेसो इय संसइओ मणुयलंभो ॥१॥ जह समिला पन्भट्ठा सागरसलिले अणोरपारंमि । पविसेज जुग्गछिडं कहवि भमंती भमंतमि ॥२॥ सा चंडवायवीई पणोल्लिया अवि लभेज जुगछिई। न य माणुसाउ भट्ठो जीवो पडिमाणुसं लहइ ॥ ३ ॥" ९।
इयाणि परमाणू, जहा-एगो खभो महप्पमाणो, सो देवेणं चुन्नेऊण अविभागिमाणि खंडाणि काऊण नलियाए पक्खितो, पच्छा मंदरचूलियाठिएण मिओ, ताणि णवाणि, अत्थि पुण कोइ तेहिं चेत्र पोग्गलेहिं तमेव खंभ णिवनेजा, नो इणद्वे समटे, एवं भट्ठो माणुस्साओ न पुणो, अहवा सभा अणेगखंभसयसन्निविट्ठा, सा कालंतरेण झामिया पडिया, अस्थि पुण कोई तेहिं चेव पोग्गलेहि करेजा ?, नो इ०१० । एवं माणुस्सत्तं दुल्लभं ।
"इय दुल्लहलंभ माणुसत्तणं पाविऊण जो जीवो। न कुणइ पारत्तहियं सो सोयइ संकमणकाले ॥ १॥ जह वारिमज्झछूढोच्च गयवरो मच्छउव गलगहिओ । वग्गुरपडिउच्च मओ संवट्टइओ जह व पक्खी ॥२॥" वारिसद्देण हत्थिबंधणं भन्नइ, संवट्टइउत्ति संवर्ल्ड-जालं तत्थ इओ संवट्टइउत्ति, " सो सोयह मच्चुजरासमोच्छुओ तुरियनिद्दपक्खित्तो। तायारमविंदतो कम्मभरपणोल्लिओ जीवो ॥३॥" सो पुण एवं मओ समाणो "काऊणमणेगाई जम्ममरणपरियट्टणसयाई । दुक्खेण माणुसत्तं जइ लहइ जहिच्छया जीवो ॥ ४॥ तं तह दुल्लहलंभं विज्जुलयाचवलं माणुसत्तं । लद्धण जो पमायइ सो काउरिसो न
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॥ १५६॥
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