Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 162
________________ भावकधर्म- पनाशकचूर्णिः । भावनावर्णनम् ॥ १३८॥ दुभिक्खं पतं, तओ निम्गंतुं न सकेन्ति, तओ कोसलगसावएण ते समासासिया-सवं दुभिक्खकालं अहं तुझं जोग वहिस्सामि, वुझंते य जोगे पुत्तो से पंतो चिंतेइ-सव्वं दव्वं विणामिहि-जइ मे पिया जीवीही, तओ पिया विसेण उद्दवित्ता, साहणं छिन्नं जोग्गासणं, एएहिं कारणेहिं सगच्छे चेव भत्तं पञ्चक्खायचं, असकेंतस्स इमो विही-उस्सासनिरोहं वा करेज, गद्धपिटुं वेहणसं वा करेजा, एवं असिवविज्जुधायादिसु दट्टब्वं । तहा-"पुचि सीयलगोवि हु पच्छासंजायतिवसंवेगो । आलोयणं तु दाउं करेइ विहिणा अणसणं तु ॥ १॥ एत्थ य आहारो खलु उवलक्षणमेव होइ नायवो । बोसिरह तओ सवं उवउत्तो भावसल्लंपि ॥ २ ॥ अण्णपि व अप्पाणं संवेगाइसयओ चरमकाले । मन्नइ विसुद्धभावो जो सो आराहओ भणिओ ।। ३ ।। वजह य संकिलिटुं विसेसओ नयरभावणं एसो । उल्लसियजीवचीरिओ तओ य आराहणं लहइ ॥ ४॥" "कंदप्पदेव १ किब्बिस २ अभियोगा ३ आसुरा य ४ संमोहा ५। एसा उ संकिलिट्ठा पंचविहा भावणा भणिया ॥१॥ जो संजओवि एयासु अप्पसत्थासु वट्टइ कहिंचि । सो तबिहेसु गच्छइ सुरेसु मइओ चरणहीणो ॥२॥ कंदप्पे कुक्कुइए दुयसीले यावि हासणकरे य । विम्हावितो य परं कंदप्पं भावणं कुणइ ।। ३ ।। कहकहकहस्स हसणं कंदप्पो अणिहुया य संलावा । कंदप्पकहाकहणं कंदप्पुवएससंसा या ॥ ४ ॥ भुनयणवयणदसणच्छएहिं करपायकन्नमाईहिं । तं तं करेइ जह हस्सए परो अपणो अहसं ॥ ५ ॥ भासइ दुयं दुयं गच्छए य दरिउ गोविसो सरए । सवदवदवकारी फुट्ट व ठिओ वि दप्पेणं ॥ ६॥ वेसवयणेहिं हासं जणयंतो अप्पणो परेसिं च। अह हासणोत्ति भन्नइ घयणोव छले नियच्छतो ॥ ७॥ सुरजालमाइएहिं तु विम्हयं कुणइ तन्विहजणस्स । तेसु न विम्हयइ सयं आइडु कुहडएसुं च ॥ ८॥" ॥ १३८ । 49 Jain Education in e a For Private & Personel Use Only lwww.jainelibrary.org

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