Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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परीषहपराजितस्य विधिः
श्रावकधर्म-3 वसिओ अणंतखुत्तो जीवो कम्माणुभावेणं ॥९॥ जं असियं बीभत्थं असुइघोरंमि गम्भवासंमि । तं चिंतेऊण सया मोक्खंमि पञ्चाशक- मई निवेसेजा ।। १०॥ बसिऊग सुरनरीसरचामीयररिद्धिमाणहरघरेसु । वसिओ पुणो वि सोच्चिय जोणिसहस्संधयारेसु चूर्णिः ॥११॥ भोत्तूण वि भोगसुहं सुरनरखयरेसु पुण पमाएण । पीयइ नरएसु भेखकलकलतउतंबपाणाई ॥१२॥ सोऊण सुइय
नरवइभवंमि जयसद्दमंगलरवोघं । सुणइ नरएसु दुहयरअकंदुद्दामसहाई ॥ १३ ॥ निहण हण गिण्ह दह पय उविध पविंधवन्धरुधाहिं । पत्तफाले लोले घोले थरे खारेहिं सिंचेहा ॥१४॥" एवमाइ संवेगनिव्वेयवयणेहिं तस्स समाही कायवा । तहा___जह कोई छुहाए पिवासाए वा पीडिउत्ति भत्तं पाणगं वा मग्गेज्जा, तत्थ किं पढमबीयपरीसहेहिं पीडिओ ओभासह किंवा पंतदेवयाहिडिउत्ति जाणणानिमित्तं सो भन्नइ-को तुम? किं गीयत्थो अगीयत्थो वा ? किं दिवसं अह राइ, ताहे जइ सो अवितहं भणह तो नायवं न एस पंतदेवयाहिडिओ, किंतु छुहादिकिलंतो ओभासइत्ति, तओ जं ओभासइ तं दायत्वं । एत्थ चोयगो भणइ-किं कारणं पच्चक्खाए पुणोवि दिजइ ?, उच्चते-हे चोयग! परीसहसेनं तेण जेयवं, तओ तप्पराजयनिमित्तं जोहस्सेव कयवभूओ पच्चक्खाएवि तस्स आहारो दायबो-"जम्हाहारेण विणा समाहिकामो न साहए तं तु । तम्हा समाहिहेउं दायवो तस्स आहारो॥१॥ सरीरमुज्झियं जेण को संगो तस्स भोयणे । समाहिसंधणाहेउं दिजए सो उ अंतए ॥२॥" तहा... तस्स अन्भुज्जयमरणमन्भुवगयस्स जइ दुविहं चिंधं न कजइ तो मिच्छत् गच्छेजा, जहा-सो उजेणीसावओ, मिच्छत्तं |च गयस्स पवजापरिपालणं अन्भुजयमरणं च निरत्थगं भवति । सरणमुवगयाणं सहायगत्तं च न कयं भवइ पायच्छित्तं च | PJ पडियरमा पावंति, तम्हा चिंधं कायक्वं, तं च दट्टण अप्पणो परेसिं च कल्लाणं करेइ, तं पुण दुविहं-सरीरे उवगरणे य,
RAASARAGARRAHARRAICH
॥ १३६ ।।
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