Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 150
________________ श्रावकधर्मपञ्चाशक चूर्णिः । ॥१२६ ॥ श्रावकवर्णकस्य विषमपदानामर्थः GAAAAAACAREE | सबहा खवणं, असहेजेत्ति-कुतित्थियपरिपेरिओ संमत्तनिश्चलत्ते न परसाहेजं अवेक्खइ, अत एवाह-देवासुरेत्यादि, तत्थ देवा वेमाणिया, असुरनागा-भवणवइविसेसा, सुवन्नत्ति सोहणवन्ना जोइसियत्ति भणियं होइ, जक्खरखपकिन्नरकिंपुरिसा-वंतरमेया, गरुलत्ति गरुडचिंधा सुवन्नकुमारा, गंधवमहोरगा-वंतरा, निस्संकिएत्ति निस्संदेहो, निकंखिएत्ति मुक्कसेसदसणपक्खवाओ, निवितिगिच्छेत्ति फलं पइ निस्संको, लद्धटे-अत्थसवणाओ, गहियटे-अत्थावधारणाओ, अहिगयटे-अत्यावबोहाओ, पुच्छियद्वे-संसयसम्भावे, विणिच्छियद्वे-परमत्थोवलंमाओ, अठमिजा-धाउविसेसा, ताओ पेमाणुरागेण-जिणवयणपीइलक्खणकुसुभाइरागेण रत्ता इव रत्ता जस्स सो तहा, केण सरूवेण ?, तदाह-अयमाउसोत्ति इदं पवयणं आउसो! पुत्ता| ईणं आमंतणं, सेसत्ति धणधन्नपुत्तकलत्तमित्तरजकुप्पवयणाइयंति, उद्दिवत्ति अमावसा, ऊसियफलिहेत्ति ऊसियं-उन्नयं फलिहरयणमिव फलिहं चित्तं जस्स, जिणधम्मलाभाओ परितुट्ठमाणस इत्यर्थः, अन्ने भणंति-"उस्सिया-अग्गलाठाणाउ अवणित्ता उद्धीकओ न तिरिच्छो कवाडपच्छभागाउ अवणीओ फलिहो-अग्गला गिहदुवारे जस्स, उदारातिसया अतिसयदाणदाइत्तणेण भिक्खुगपवेसणत्थं अणग्गलियघरदुवार इत्यर्थः, अवंगुयदुवारेत्ति कवाडाईहिं अपिहियघरदुवारो, सहमणलाभेण न कुओवि पासंडिगाउ बीहेइ, सोहणमग्गपरिग्गहेण उग्घाडसिरो अच्छइत्ति भणिय होइ," केई पुण भणति"भिक्खुगपवेसणनिमित्तं उदारासयाओ अपिहियघरदुवार" इत्यर्थः, चियत्तोत्ति लोयाण पीइकारग एव अंतेउरे वा परघरे वा पवेसो जस्स स तहा अइधम्मिययाए सवत्थसंकणिजोत्ति भणियं होइ, अन्ने भणति-" चियत्तो पीतिजणगो अंतेउरघरेसु पवेसो सिट्ठजणपविसण जस्स स तहा", अणिसालुत्ति जं भणियं होइ, अहवा चियत्तो-चत्तो अंतेउरघरेसु परसं-1 LOCALCHECRECAUGREEKA5 इ, सोहणमग्गपरित्यर्थः, चियत्तोतिह, अन्ने भणी ॥ १२६॥ Jain Education ICAI %EX For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org

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