Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
भावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
॥ ११३ ॥ ४
Jain Education Int
১৮6
तहा मच्छरो - असहणं साहूहिं मग्गियस्स कोवकरणं, अहवा ' तेण रंकेण जाइएण दिनं अहं पुण किं तओवि हीणो ' एवमाह विगप्पो मच्छरो, सो जस्स अस्थि सो मच्छरिगो तस्स भावो मच्छरियया तं च वज्जे, चैत्रसहो समुच्चये । अइयारभावणा पुण इमा-जया अणाभोगाइणा अइकमाइणा वा एए अइयारे समायरइ तथा अइयारा, अण्णया पुण भंगोति । तहा च " बरसाहुगुणसमिद्धं साहुजणं साहुवच्छलं च जणं । पूइंतस्स उ भत्तीए होइ धम्मो जिणपसत्थो ।। १ ।। ते जं करेंति धीरा सुसाडुणो साहुवच्छला निच्चं । तेसिं भत्तीए गिट्टी वि होइ धम्मेण संजुत्तो ॥ २ ॥ कालंमि वट्टमाणे अईयकाले अणागए चेव । अणुजाणइ जीवइयं समणे भावेण वेदंतो || ३ || तो सकारेयद्दा बुहेण वरधम्मचारिणो निययं । कायवा जीवदया य होइ निस्सेकामे || ४ || धम्मो अणुग्गिहीउ संपत्ती जं मए इमा पत्ता । वित्तं पत्तं महसुद्धया य एयंति कल्लाणं ।। ५ ।। " एमाइ भावणापहाणेण होयव्वंति ।। ३२ ।। भणियं चत्थं सिखावयं, तन्भणणेण भणियाणि बारसवि सावगवयाणि, संपयं तेसु अइयारमणणं सोहे | नणु जइ अइयाराऽचि परिहरणीयत्तणेण इह भन्नंति तथा केण कारणेण तेसिंपि वयापि पञ्चकखाणं नोदसि ? तवजण मेत्तमेव य उवहट्ठेति एयं चित्ते ठवेऊण भणइ -
एत्थं पुण अइयारा नो परिसुद्धेसु होंति सव्वैसु । अक्खंडविरह भावा वज्जह सव्वत्थ तो भणियं ॥ ३३ ॥
एत्थं-एएस पाणाइवायाइएस पुणसदो एवं विसेसेइ, एवं ताव वयाणि भणियाणि एएसु पुण वएसु अइयारा देसभंगरूवा, नो-न चैव परिसुद्धे सु-कम्मखओवस मागय विरइपरिणामपडिवनयाए निम्मलेसु हुंति-संभवंति सव्वेसु बारससुवि एत्थ कारणं भन्नइ-अक्खंडविरह भावा-पडिपुन्नदेसविरहमात्राओ, न हि पडिपुन देसविरइपरिणाम सब्भावे बंधवहाहपवित्ती
For Private & Personal Use Only
अतिचारकथन
तात्पर्यम्
॥ ११३ ॥
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218